स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर : त्रिवार वंदन...!

28 May 2021 20:06:23
वीर सावरकर ये नाम बाकी सभी की तरह ही मैंने भी कहानियों मे सुना था, एक महराष्ट्रियन परिवार में जन्म लेने के कारण मेरे भी घर में बाकी परिवारों की तरह मराठीभाषी क्रांतिकारियों की कहानिया सुनाई जाती थी, परंतु आप सभी की तरह मेरे भी जीवन में स्वतंत्र भारत, क्रांति और बलिदान जैसे शब्द केवल निबंध, परिचर्चा और 26 जनवरी, 15 अगस्त को बोले जाने वाले शब्द थे, हमारी हिन्दी माध्यम की किताबों में एक भी पाठ या कविता सावरकर जी से संबन्धित नहीं थी।
 

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मातृभाषा से लगाव होने के कारण मै स्कूल में होने वाली विविध मराठी परीक्षाओं में सम्मिलित होती थी पर उस समय वो मराठी पुस्तक बहुत ही प्राथमिक स्तर की होती थी। मेरी ताई मराठी साहित्य पढ़ रही थी और वो अक्सर अपने कॉलेज से मराठी की किताबें ले आया करती थी, मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौक था और ये कहना गलत नहीं होगा की आज मुझे जो थोड़ी बहुत मराठी भाषा की समझ है वो मेरी ताई की लायी हुई किताबे पढ़ने के कारण ही है, तो इस प्रकार मेरा परिचय इस महान व्यक्तिव से हुआ और मुझे पता चला की जिस किनारे पर मै खड़ी हूँ वो एक अनंत, और असीमित जलनिधि है जिसके किनारों का दूर-दूर तक कोई ठिकाना नहीं है। इतने बड़े और महान व्यक्ति के बारे में बोलने की मेरी योग्यता ही नहीं है, पर पता नहीं क्यू जैसे-जैसे मै उनके बारे में पढ़ती गयी एक आंतरिक लगाव सा महसूस होने लगा, ठीक वैसा ही जैसा अपने देश से प्रेम करने वाले हर किसी को महसूस होता है। कुछ बातें और कुछ लोगों से मिलने की वजह से मेरा प्रेम और ही बढ़ता गया | किस्से अनेक है पर एक घटना बताना चाहूंगी |
वीर सावरकर किसी के जीवन में कितना महत्व रखते है? वो भी आज के समय में?? सुनकर अजीब लगेगा की किसी के जीवन का एकमात्र सपना सावरकरजी के कालापानी की सजा वाली जगह याने अंडमान की सेल्यूलर जेल में जाकर उस अंधेरी कोठरी को देखना हो सकता है?? एक औरत जो केवल इसलिए जीवित रहना चाहती थी क्यूकी उसे सेल्यूलर जेल देखे बिना नहीं मरना था | विचित्र बात है ना?? पर ऐसी एक शक्सियत से मै प्रयक्ष मिल चुकी हूँ, अपने जीवन में उन्होने सारी पूंजी केवल इसलिए जमा की थी क्यूकी वो अपने भगवान वीर सावरकरजी की सजा बिताए हुये स्थान को देखना चाहती थी, परंतु उससे पहले उनका भयंकर एक्सिडेंट हो गया, उनका ऑपरेशन करना पड़ा, पर आप जानते है की उस मरणासन्न अवस्था में उनके मुह से केवल इतने ही शब्द निकले की मै अभी मर नहीं सकती, मुझे अंडमान जाना है सेल्यूलर जेल देखने जहां वीर सावरकरजी को रखा गया था। और क्या कहूँ उस शक्ति को जिसने उसे बचा लिया और ठीक होने के बाद वो सबसे पहले अंडमान की यात्रा पर गयी।
सावरकरजी व्यक्तिव ही कुछ ऐसा है की जो भी उनके जीवन, संघर्ष और त्याग के बारे में जान लेता है वो उनकी भक्ति किए बिना नहीं रह पाता।
 
 

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भारत देश के स्वतन्त्रता आंदोलन की बात हो और सावरकरजी का नाम ना लिया जाए ये असंभव है, उनका नाम उनका जीवन और चरित्र इतने महान है कि उनके बारे में कुछ लिखने से पहले दस बार सोचना पड़ता है। उनके गुणों की बात की जाये तो वे, ना केवल एक महान क्रांतिकारी, देशभक्त या अभूतपूर्व संगठनकर्ता थे बल्कि एक उत्तम विचारक और दुरद्रष्टा भी थे।इतना ही नहीं कला और विज्ञान जो की दो अलग अलग पहलू है उसके विद्वान...! उन्हे विभिन्न भाषाओं की पकड़ थी उन्होने मराठी भाषा में भी अनेक नए शब्दों का समावेश किया ,यही नहीं अनेक प्रकार के ग्रंथो का वाचन और विवेचन भी किया।वे कभी प्रेम और धैर्य की पराकाष्ठा तो कभी अग्नि से भी अधिक दाहक...! कभी सूर्य की तरह प्रखर तो कभी समुद्र की तरह विशाल…उनके व्यक्तित्व को कुछ शब्दों में बताना ठीक उसी तरह होगा जैसे सूरज के सामने एक छोटी सी लौ जलाना...सावरकरजी स्वयं एक सिपाही भी थे और सेनापति भी, वो अकेले ही विदेशी ताकतों की नाक में दम करने के लिए काफी थे।उनके बारे में अनेक किताबें लिखी गयी, भाषण दिये गए, व्याख्यान और परिचर्चा हुई, पर मै आपको आज केवल वो बातें बताऊँगी जो मैं उन्हे पढ़ने के बाद जान पायी।
 
उस ज्वालामुखी का वर्णन मेरी लेखनी से करने की न ही मेरी योग्यता है न पात्रता, बस अपने मन में उमड़ रहे कुछ विचारों को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का साहस कर रही हूँ, आज उनके जन्मदिन पर मेरे ये शब्द उतने से है जितना की समुद्र में कुछ रेत के कण...भारत के इतिहास के इस चमकते सितारे का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भगूर गाव में हुआ, तीन भाई और एक बहन में विनायक दूसरे नंबर पर थे। एक और जहां सामान्य परिवार के लोग अपने बच्चों को चिड़िया रानी, जंगल का राजा ऐसी कहानियाँ सुनाते है वहीं विनायक के माता-पिता अपने बच्चों को शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, भगवान राम और भगवान कृष्ण की कहानियाँ नित्य सुनाते थे। ऐसा कहते हैं की ‘पूत के पाँव पालने में’ ही नजर आ जाते है उसी प्रकार बालक विनायक को भी वीररस से ओतप्रोत पोवाड़े पसंद आते थे। और वो बड़ी जल्दी उन्हे कंठस्थ कर लिया करते थे। एक योगयोग ऐसा भी है उनके जन्म के बारे में कि उनके जन्म के कुछ दिन पूर्व “कार्ल मार्क्स” कि मृत्यु हुई थी और जन्म के कुछ दिन पश्चात “मुसोलिनी” का जन्म.....ये दोनों ही नाम क्रांति के क्षेत्र में कितने महान है ये हम सभी जानते है।
 
बालक विनायक बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि और तेजस्वी व्यक्तिव के धनी थे, मात्र 6 वर्ष कि छोटी सी उम्र में उन्हे काव्य करने का हुनर आ गया था, 10 वर्ष का होते तक लेख, भाषण, वादविवाद, कविता ऐसी हर विधा में उन्होने खुद को प्रवीण कर लिया था, उनके व्यक्तित्व पर बाल गंगाधर तिलक , महादेव गोविंद रानडे और शिवराम पंत परांजपे जैसे लोगों का प्रभाव था, कहते है उस छोटी सी उम्र में उन्होने “आरण्यक” जैसे जटिल और गहन ग्रंथ को स्वयं ही बिना किसी सहायता पढ़ लिया था। उनके बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि उनके बचपन से ही उनके भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता था।
 
युवावस्था में आते तक विनायक अपने मित्रों और आपपास के लोगों के लीडर बन चुके थे, देश के लिए बलिदान देने वाले क्रांतिकारी उनके लिए देवता थे और उनकी जीवनी ग्रंथ…विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हो या अभिनव भारत समूह कि स्थापना ये सभी कार्य उन्होने कॉलेज के शुरुवाती दिनों में कर लिए थे, विदेशी शासन का विरोध , महारानी विक्टोरिया के निधन को राष्ट्रीय शोक न मानना तथा विदेशी कपड़ों कि होली जलाना ऐसे कुछ अभूतपूर्व कार्यों को राष्ट्रद्रोह का नाम देकर उन्हे कॉलेज से निष्कासित भी किया गया, पर वो सावरकर थे...वो कहाँ रुकने वाले थे। अटल जी कहते हैं न “सावरकर माने तेज, सावरकर माने तीर...


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उनका ये तेज दिन-ब-दिन बढ़ता ही गया......वे भारत में रहे तब भी और बेरिस्टर बनने लंदन गए तब भी...किसी को उनकी ताकत का अंदाजा भी नहीं था, क्यूकी जो काम वो यहाँ भारत में रह कर अपने देश के लिए करना चाहते थे वही काम उन्होने लंदन से भी जारी रखा, अपनी ओजस्वी वाणी और प्रगल्भ नेतृत्व के कारण वो वहाँ भी क्रांतिकारी भाइयों के चहेते बन गए थे। उनके निजी जीवन में बेहद उतार-चढ़ाव आए, उनके परिवार पर एक के बाद एक संकट आते गए, आर्थिक तंगी तो थी ही पर एक क्रांतिकारी का परिवार होने के नाते उन्हे सामान्य जीवन भी ठीक से नहीं जीते आता था पर विनायक की तरह ही उनके बड़े और छोटे भाई दोनों ने भी देशहित के लिए अपना सर्वस्व त्याग कर दिया।
 
सावरकर जी के बारे में कितना और क्या कहा जाए समझ नहीं आता, उनसे डरकर उनकी किताब को छापने से पहले ही जप्त कर लिया जाता था, इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ब्रिटिश राज भी उनसे कैसे काँपता था। उनका जीवन एक जलती मशाल था, जहां भी किसी के अधिकारों का हनन हो रहा हो वो चुप नहीं बैठते थे। उनका नाम वि.दा.सावरकर था परंतु लोग उन्हे “वीर सावरकर” कहा करते थे, और उन्होने उस नाम को चरितार्थ किया “मर्सिलीज़” बन्दरगाह पर अभूतपूर्व छलांग लगाकर…कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो ऐसा कुछ कर सकते है, अपने जीवन में उन्होने ऐसे अनेक वीरतापूर्ण कार्य किए है। उनसे डरकर और अपने राज के लिए उनको सबसे बड़ा खतरा मानकर सावरकर जी को 2 बार कालापानी कि सजा सुनाई गयी।
 
पर जैसे मैंने कहा न वो वहाँ भी चुप नहीं बैठे, कई लोग कहते है कि वो अकेले कैदी थोड़ी थे वहाँ पर ऐसे हजारों कैदी हुआ करते थे, परंतु उन हजारों कैदियों के हक़ के लिए लड़ने वाले, उनकी सजा कम करने के लिए पत्र लिखने वाले, खाने-पीने और स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में चर्चा करने वाले, कैदियों की शिक्षा और रोजगार कि व्यवस्था के बारे में बोलने वाले एकमात्र वीर सावरकर ही थे, माना उस सेल्यूलर जेल में कई कैदी होंगे परंतु जेल कि अंधेरी दीवार पर कविता लिखने वाला एक ही था, जो “ना भूतो न भविष्यति” ऐसा था।


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सावरकरजी के जीवन का उद्देश्य अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाना था, चाहे वो ब्रिटिश राज के खिलाफ हो या समाज में रहने वाले रूढ़िवादी लोगों के खिलाफ...उन्होने ऐसे लोगों के हक़ में लड़ाई की जो उपेक्षित थे, जिन्हे समाज में मान नहीं मिलता था, वो जातीभेद नहीं मानते थे और सभी से ये आग्रह करते थे कि अपने अधिकारों के लिए सबको लड़ना चाहिए, अपने जीवन के अंत तक उन्होने केवल दूसरों को उनके अधिकारों के बारे में बताया और समझाया कि जहां कहीं भी अन्याय हो अत्याचार हो वहाँ चुप नहीं बैठना।
 
ऐसे थे वीर सावरकर...
 
अपने शब्दों से अपनी लेखनी से उन्होने अपने देश को इतना कुछ दिया है जो गिना ही नहीं जा सकता, उनके विचार उनके काव्य संग्रह, उनकी कालापानी की सजा, यही नहीं उनके जीवन से जुड़ी हर छोटी बड़ी बात आज हम सबके लिए प्रेरणादायी साबित हो सकती है, उनके भारत को लेकर जो विचार उस समय थे आज ठीक वही वातावरण निर्माण हो चुका है, इसलिए आज हमें एक बार फिर उनके विचरों को लोगों तक पहुचाना होगा, इतिहास के पन्नों में समा चुके वीर सावरकर को एक बार फिर वापस सबके सामने लाना होगा क्यूकी यदि आज हम सबने उनके सिर्फ एक-एक गुण को आत्मसात करने का भी सोच लिया न तो केवल उसी से हमारा पूरा जीवन धन्य हो सकता है।

- प्रगती गरे दाभोळकर 
 
 
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