संजय मिश्रा के फॅन्स हैं, तो एक बार ‘कामयाब’ जरूर देखें…

07 Jul 2020 11:00:00

आपको ऑल द बेस्ट मूव्ही का ‘धोंडू जस्ट चिल..’ बोलने वाला रघुनंदनदास गोवर्धनदास वाकवले याद है ? या फिर गोलमाल अगेन में “जिस तरह नहले के पहले दहला आता है वैसे ही गुरु के पहले चेला आता है” बोलने वाला बबली भाई ? ये सभी डायलॉग्स फेमस करने वाला व्यक्ति याने कि संजय मिश्रा | और हमारे देश में उनके टॅलेंट के फॅन्स ना हों या कम हों ये तो हो ही नहीं सकता है ना ? तो य़दि आप उनके फॅन हैं, तो क्या आपने उनकी ‘कामयाब’ यह फिल्म देखी ? और यदि नहीं देखी तो जरूर देखिये | ये कहानी है एक ऐसे ‘कॅरेक्टर आर्टिस्ट’ की जिसने ४९९ फिल्मों में काम किया है, और एक गलती के चक्कर में उसका फिल्मों से नाता टूट जाता है, और अब उसने ठान लिया है कि वह अपनी जिंदगी की ५०० वी फिल्म कर के रहेगा |

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यह कहानी है सुधीर की | ८०-९० के दशक में ४९९ फिल्मों में अलग अलग किरदार निभाने वाला ‘कॅरेक्टर आर्टिस्ट’ जो खुद को आलू कहता है, जिस तरह आलू किसी भी सब्जी के साथ फिट हो जाते हैं, वैसे ही ये कॅरेक्टर आर्टिस्ट भी कहीं भी किसी भी फिल्म में फिट हो जाते हैं | ऐसे ही एक ‘आलू’ की कहानी याने कि कामयाब | फिलहाल ये सधीर अपने पुश्तैनी घर में अकेला रह रहा है | जिसे दारू पीने की आदत है, और पत्नी के निधन के बाद अकेले गुजर बसर कर रहा है | जिसकी बेटी अपने पती और बेटी के साथ पास ही में रहती है, और बार बार अपने पिता को अपने साथ रहने के लिये बुलाती है, लेकिन वे मानते नहीं | सुधीर को अपनी नातिन से बहुत प्यार है, और वो उसे उनके एक किरदार ‘शेरा पार्टनर’ के नाम से बुलाती है | सुधीर की एक फिल्म का एक डायलॉग काफी हिट होता है, “एंजॉइंग लाइफ क्यों कि और ऑप्शन ही क्या है!!!” | इस वाकये से आप संजय मिश्रा को रिलेट कर सकते हैं |

कहानी शुरु होती है, एक इंटरव्ह्यू से जिसमें एक रिपोर्टर ‘भूले बिसरे किरदारों’ का साक्षात्कार लेती है | और इस एक साक्षात्कार से सुधीर को पता चलता है कि वह ४९९ फिल्में कर चुका है, और फिर उसमें जज्बा जागता है ५०० वी फिल्म पूरी कर अपना नाम लिम्का हुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने का | और इस ‘बूढे व्यक्ति’ का संघर्ष चालू होता है | और यह कहानी इसी संघर्ष की है | क्या वह अपनी ५०० वी फिल्म कर पाता है, क्या उसे कोई इतनी अच्छी फिल्म मिलती है, या नहीं ये तो आपको फिल्म में ही देखना पडेगा | लेकिन आप कहानी से ज्यादा इस किरदार के प्यार में पड जाएँगे ये पक्की बात है |



बात करते हैं किरदारों की तो संजय मिश्रा की जो शुरु से ही ताकत रही है उनका रिअलिस्टिक अभिनय और उनका संवाद कौशल्य वह इस फिल्म में भी भरपूर नजर आया है | संजय मिश्रा स्वयं शुरु से ही कॅरेक्टर आर्टिस्ट रहे हैं, इसलिये शायद कहीं ना कहीं आप उनके अभिनय से रिलेट कर पाते हैं | इनके साथ गुलाटी नामक एक किरदार है जिसकी कास्टिंग कंपनी है, इस किरदार में सभी के पसंदीदा पप्पी भैय्या याने कि दीपक डोबरियाल, और अवतार के किरदार में ‘अवतार गिल’ इन्होंने बहुत ही अच्छा अभिनय किया है |

कहानी लिखी और निर्देशित की है, हार्दिक मेहता नें | इन्होंने सुधीर के किरदार को बहुत ही प्यार से बुना है | सुधीर अकेले हैं, कोई खास बडे एक्टर भी नहीं, दारु के नशे में रहना उन्हें पसंद है | ऐसे Flawed किरदार से भी लोग प्यार करें इसके लिये कहानी और संवाद उतने अच्छे लिखे होने जरूरी होते हैं, और ये फिल्म इसका सबसे अच्छा उदाहरण है | कहानी का अंत थोडा सा अधूरा सा लगता है | लेकिन पूरी फिल्म आपको बांधे रखती है |

इस फिल्म को शाहरुख खान की कंपनी रेड चिलीज एंटरटेनमेंट्स ने प्रस्तुत किया है | इस कहानी की सबसे खूबसूरत बात यह है कि यह इस बात को हाइलाइट करती है कि जितनी मेहनत किसी फिल्म के लिये एक हीरो करता है, उतनी या शायद उससे ज्यादा एक कॅरेक्टर आर्टिस्ट करता है और उसे ना तो पैसा मिलता है ना ही शोहरत | लेकिन फिर भी उनका काम बहुत ही ज्यादा मायने रखता है | इस फिल्म में सच्ची जिंदगी में ऐसा जीवन जीने वाले किदार जैसे कि लिलिपुट, बिरबल, गुड्डी मारुती, विजू खोटे आदी को शामिल किया गया है |

ऐसी फिल्म जो फिल्म इंडस्ट्री की सच्चाई को बताती है, एक कॅरेक्टर आर्टिस्ट को ही हीरो बना कर प्रदर्शित करती है, एक फिल्म जो हमें फिल्म को एक हीरो या स्टार से कुछ ज्यादा उपर उठ के स कला को देखना सिखाती है, ऐसी फिल्म एक बार जरूर देखें | आप यह फिल्म आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं |


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