एक नन्हा समाज सेवक

19 Jul 2020 11:00:00

छोटा पैकेट बडा धमाका या पूत के पांव पालने में ये हिंदी मुहावरे हम अक्सर सुनते है, बहुत शरारती या पढने में तेज बच्चो के लिये इनका उपयोग किया जाता है। और कभी-कभी किसी विशेष प्रतिभा जैसे चित्रकला, रांगोली, डान्स या गाने कि प्रतियोगिता जीतने पर भी ये कहा जा सकता है। परंतु इन सब के अलावा भी कुछ ऐसे क्षेत्र है जहां छोटे बच्चे अपनी उम्र को ताक में रखकर एक नया कीर्तिमान रचने कि कगार पर है।


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आज हम बात करेंगे ऐसे ही एक नन्हे से हीरो कि जिसने अपने नेक काम की वजह से अपनी उम्र को बहुत पीछे छोड दिया है और अपने अलग अंदाज से अपनी विशेष पहचान बनाई है। उद्भव रीतेश मिश्रा ये 12 वर्ष का बालक कक्षा आठवी का विद्यार्थी है, एक सामान्य से घर में जन्मा ये बालक बचपन से ही पढने-लिखने में तेज था, साथ ही उसे बचपन से ही बागवानी का बहुत शौक था, अपने माता-पिता को उसने घर के पास ही एक जमीन के टुकडे पर पेड-पौधे और सब्जिया उगाते देखा था। उस जमीन पर अलग-अलग प्रकार कि सब्जियां और फल देख कर उद्भव को बडा अच्छा महसूस होता था, और वो हमेशा यह सोचता कि बडे होकर वह भी पापा कि तरह बगीचा बनायेगा।


उसका ये सपना कब पेड-पौधो से दोस्ती में बदल गया पता ही ना चला, अपने हर जन्मदिन पर उद्भव एक पेड लगाता और अपने दोस्तो से भी ऐसा ही करने का आग्रह करता, खाली वक़्त में जहा छोटे बच्चे खेल-कूद में व्यस्त होते है वही सबसे निराला सबसे अलग उद्भव अपना वक़्त अपने बगीचे में इन दोस्तो के साथ बिताता। वो इन पेड-पौधो को अपने परिवार का सदस्य ही मानता था और उनसे सारी बातचीत किया करता था। सुन कर आश्चर्य होगा कि उस वक़्त उद्भव कि उम्र मात्र 7 साल थी।


अपने पापा के साथ बगीचे में साफ सफाई करना, पेडों को नियमित रूप से पानी देना, इन सब में उद्भव को बडा मजा आता था। साथ ही पेड-पौधे लगाने से होने वाले फायदे, पेडो से मिलने वाली वस्तुएं, औषधियां इन सब के बारे में उद्भव जानकारी इकठ्ठा करते थे। कृषी एवं पर्यावरण ये उनका पसंदीदा विषय था, इस दौरान उन्हे ये पता चला कि वायू-प्रदूषण का स्तर दिन-ब-दिन बढता जा रहा है, जिसका एक मुख्य कारण पेडों कि कटाई है, और इस प्रदूषण के कारण मनुष्यों के दैनिक जीवन पर बहुत गहरा असर हो रहा है, दूषित वायू के कारण लोगो में यहां तक कि छोटे-छोटे बच्चों में अनेक प्रकार की बीमारिया जैसे दमा, एलर्जी अस्थमां, फेफडो और श्वसन संबंधित रोग फैल रहे है जो कि घातक है। ओझोन परत पर भी इस प्रदूषण का असर हो रहा है, ये सब जानने के बाद उद्भव को बडा दुख हुआ, और उन्होने इस सबसे बचने का रास्ता खोजना शुरू किया, अध्ययन करने के बाद उन्हे पता चला कि पेड- पौधे लगाने मात्र से ही हम इस प्रदूषण को आधा कर सकते है।

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बस्स.... उसी दिन उद्भव ने ठाना कि वो ज्यादा से ज्यादा पेड लगायेगा, जिस वक़्त उन्होने ये तय किया उस वक़्त उनकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी। गर्मी का मौसम था, घर पर आम अक्सर आया करते थे, तो उद्भव ने आम कि गुठलियां इकठ्ठा करना शुरू किया, और घर के पास वाले जमीन के टुकडें में उन बीजो को लगाता गया। कुछ हफ्तों बाद उसने देखा कि वहां पर ढेर सारे आम के पौधे उग आये थे, अब इतने सारे आम के पेड उस जगह पर लगना संभव नही था अतः उद्भव के पिताजी ने उन पौधों को आस-पास के लोगो और मित्रों में बाटना शुरू कर दिया। उसके पिताजी अक्सर बगीचे में उगाये पौधे और सब्जी इत्यादी लोगो में बाटा करते थे, उद्भव ये बचपन से देखता आ रहा था।

इस बार भी उसने देखा कि वो आम के पेड पापा ने बडे प्रेम और आनंद से दूसरो को बाट दिये, पापा से पूछ्ने पर वो बोले कि हम अकेले इतने पेड पौधे नही लगा सकते जिससे प्रदूषण खत्म हो इसलिये सब मिल कर करेंगे तो जरूर कुछ हद्द तक कम हो जायेगा। इस बात को उद्भव ने अपना सूत्र वाक्य बना लिया, अब उसने तय किया कि वो अपने बगीचे में उगने वाले पौधे अपने मित्रो और जान-पहचान वालो को बाटेंगा, उसी दिन से इस नेक काम का श्रीगणेश हुआ, अब उद्भव इस काम में जुट गया, घर में जो भी फल आते, नींबू, अनार, जामुन, अमरूद और बाकी भी इन सब की बीजें उद्भव जमा कर लेता और उसे रोप देता, जब उससे पौधे उग आते तो वो उन पौधो को बांट देता, अब यह सिलसिला चल निकला।

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इसी बीच कदम संस्था से उनका परिचय हुआ, ये संस्था पर्यावरण को बचाने पेड-पौधे लगाने का काम करती है, इनसे जुडने के बाद उद्भव ने उस संस्था के साथ मिलकर पेड लगाने का काम किया, इसी दौरान उद्भव को एक बात समझ आयी कि जिस पद्धति से वो पौधे उगा कर लोगो को बाटता था उसमे बडी दिक्कत होती थी, प्लास्टिक बैग ,मिट्टी, और बाकी वस्तुओ के साथ इस काम को करने में समय और जगह दोनो बहुत ज्यादा लगता था।

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इस समस्या से बचने उसने काफी अध्ययन किया और उसे एक नयी तकनीक पता चली, “seed balls” बनाना, seed balls एक प्रकार कि छोटी-छोटी गेंदनुमा वस्तु है जिसमे खाद, बीज और मिट्टी का मिश्रण होता है, जिसमे कुछ मात्रा में “wooden dust” भी होती है, इसका गीला मिश्रण बना कर उसमे बीज मिलाते है और आटे की तरह गूंद कर छोटी-छोटी बॉलनुमा आकृती बना कर उसे सुखा कर तैयार किया जाता है, विशेष बात ये है कि उद्भव ने ये सारी प्रक्रिया खुद अपने मन से इंटरनेट कि मदत से सीखी, और ‘seed ball’ जैसी तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया, इस विधी को करने में भी अच्छी खासी मेहनत लगती है परंतु एक बार ये बॉल बन जाने पर इस्तेमाल करने में बहुत ही आसन होते है, seed balls को बहुत ही आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है।

उद्भव ने भी इन balls को यहां से वहां ले जाने के लिये रसगुल्ले के खाली डब्बो का उपयोग करना शुरू किया, इस काम में उसकी बहन उसकी मदत करती थी। उद्भव अब हजारो कि संख्या में seed balls बनाने लगा |


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वो लोगो से अपील करता कि आप जब भी बाहर जाये अपने साथ ये seed balls अवश्य ले जाये और रास्ते के दोनो तरफ ये फेंकते जाये । यदि आप 100 balls भी फेकते है तो उसमे से 60 या 70 बीजे जमीन में चली जायेंगी, फिर जब उस पर बरसात का पानी पडेगा तो काफी बीजो से पौधे लग जायेंगे, पर्यावरण को बचाने के लिये ये एक कदम भी काफी है!


हर साल उद्भव गर्मी के मौसम में ये seed balls बना कर तैयार कर लेता है और घूमने जाने वालों को ये अवश्य देता है जिससे वो शहर से बाहर जाते समय उन seed balls को ले जाये और रास्ते के दोनो ओर उन्हे फेंक दे, ऐसा करने से वो balls जमीन में दब जाते है और कुछ ही वक़्त बाद जब बारिश होती है तो उन बीजो से पौधे उगना शुरू हो जाते है। इन balls को बनाते समय उस पर पेड की छाल का कवर बनाया जाता है जिससे मिट्टी में दबने के बाद भी इसमे चींटी या कीडे नही लगते, 3 महिने बारीश और 3 महिने ठंड का मौसम ऐसे 6 महिने में एक पौधा स्थिर हो जाता है | पिछले 4 सालो में उद्भव 25000 से उपर seed balls बना चुका है, इतनी कम उम्र में इतनी बडी संख्या में इन balls का वितरण अपने आप में एक कीर्तिमान है, आज उद्भव अनेक संस्थाओ से जुड चुकें है |“कदम संस्था” “युवा ट्रैफिक फोर्स” “कदम कला केंद्र” और “जाबाली राईडर्स” इन सभी को उद्भव seed balls देता है, हाल ही में जाबाली राईडर्स नेपाल कि यात्रा पर गये थे, तब उद्भव ने उन्हे करीब 500 seed balls और कुछ अशोक के पेड भी दिये, उनका कहना है कि एक पेड को ले जाने में काफी समस्या होती है उसकी तुलना में seed ball ले जाना बहुत ही आसान होता है, एक रसगुल्ले के डिब्बे में 200 से अधिक संख्या में balls आ सकते है, आज उद्भव अपने साथ अनेक लोगो को जोड चुका है, उसने "बाल कदम मित्र" नाम का एक ग्रुप बनाया है जिसमें उसने अपने ही जैसे 625 बच्चो को जोडा है और आगे वह उन सबके साथ मिल कर काम करना चाहता है।


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भविष्य की बात करे तो उद्भव कृषी-विज्ञान(agriculture) में अपनी पढाई करना चाहता है, अपने इस नेक काम को वो अलग-अलग प्रयोगो और आधुनिक तकनिको का उपयोग करके ऐसे ही आगे बढाना चाहता है। आज जबलपुर शहर में कई जगह उसे अपने काम के कारण पहचान मिली है, ढेरो प्रोत्साहन और इनाम मिले है, पर उसकी इच्छा बहुत बडा काम करने की है, जिसके लिये उसे सभी के साथ और सहयोग की आवश्यकता है, उद्भव और उसके जैसी सोच रखने वाले बच्चे अपने आप में एक मिसाल है कि उनकी उम्र उनके इरादों को ना ही बदल सकती है न ही कमजोर कर सकती है, इस पूरे कार्य में उद्भव के माता-पिता का योगदान भी सराहनीय है जिन्होने हर कदम पर उसका साथ दिया और उनके आशीर्वाद से आज वो इस मुकाम तक पहुचां है, पर्यावरण के प्रति जागरूकता, प्रदूषण को कम करना, तथा लोगो को बीमारियों से बचाने के लिये शुरू कि गयी ये नेक और अनोखी मुहिम अत्यंत गौरवपूर्ण है, इस अमूल्य सेवा के लिये उद्भव का नाम सुवर्ण अक्षरो में लिखा जायेगा |

- प्रगती गरे दाभोळकर 

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