जिस देश को हम इतना Progressive कहते हैं, उसकी सोच इतनी पिछडी ?

    02-Jun-2020   
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आप सही समझे होंगे, यहाँ पर बात अमेरिका की ही हो रही है | हमारे देश में से कितने नौजवान अमेरिका जाते हैं पढने या फिर नौकरी करने | कई वहीं पर सेटल हो जाते हैं ये सोचकर कि यहाँ जीवनस्तर कितना अच्छा है, इस देश ने कितनी प्रगती की है | और ये देश कितना प्रोग्रेसिव्ह है अर्थात कितना विकास कर चुका है | लेकिन हाल ही में हुई कुछ घटनाओं नें फिर एकबार सिद्ध कर दिया है कि हम जिस देश को इतना प्रोग्रेसिव्ह समझते हैं, उसकी सोच कितनी ज्यादा पिछडी हुई है | पिछले कुछ दिनों से अमेरिका में श्वेत अश्वेत वाद फिर एक बार छिड गया है | अमेरिकी पुलिस द्वारा एक अश्वेत व्यक्ति की बर्बरतापूर्ण हत्या से अमेरिका फिर एक बार दो हिस्सों में बँट गया है | और कोरोना की महामारी के होते हुए भी लोग रासतों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं | कहानी इतनी ज्यादा लंबी हो चुकी है कि कहा जा रहा है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बंकर में छुप कर रहना पडा | ऐसी सारी घटनाओं नें फिर एक बार अमेरिका को पिछडा साबित कर दिया है |


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अमेरिका में कुछ दिन पहले ही केवल सिगरेट पर से हुए एक वाद विवाद के बाद पुलिस को बुलाया गया, और पुलिस ने अमेरिका के एक व्यक्ति (यहाँ मुझे कहना पड रहा है कि वे अश्वेत हैं, क्यों कि ये पूरा मुद्दा ही इस बारे में है.. लेकिन ये कहना बहुत ही दर्दनाक है |) जॉर्ज फ्लोइड को जानबूझकर बर्बरता से मार दिया | उसकी गलती क्या थी ? उसका रंग | वहाँ खडे लोग बार बार पुलिस वालों को रोक रहे थे, लेकिन पुलिस अफसर डेरेक शॉवेन ने जॉर्ज को लिटा कर उसकी गर्दन पर अपना घुटना रखा | वो बार बार बोले जा रहा था ‘मैं साँस नहीं ले पा रहा हूँ, मैं साँस नहीं ले पा रहा हूँ |” (I can’t breathe man.. I can’t breathe ) लेकिन पुलिस ने लगभग ८ मिनिट तक उसके गर्दन पर अपना घुटना दबाए रखा इसेसे हुआ ये कि उसके शरीर में ऑक्सिजन की कमीं हो गई और कार्डिएक अरेस्ट के कारण उसकी मौत हो गई | और इसके बाद कोरोना महामारी के होते हुए भी अमेरिका ने जो दंगे देखे वे रौंगटे खडे कर देने वाले हैं |



न्यूयॉक सिटी, अटलांटा सहित अमेरिका के कई हिस्सों में प्रदर्शन हुए | कोरोना के होते हुए भी लाखों की संख्या में प्रदर्शनकारियों ने जगह जगह प्रदर्शन किये, कुछ का स्वरूप तो काफी हिंसक रहा | ऐसे में कोरोना का संकट और भी ज्यादा गहराने का खतरा जहाँ मंडरा रहा है, वहाँ इस बात पर चुप रहना भी सही नहीं था | ऐसे में यह मामला काफी बढ गया | पूरे सोशल मीडिया पर इस घटना की निंदा की जा रही है | लेकिन अमेरिका के लिये ये नया नहीं है |





अमेरिका में हमेशा से ही अश्वेत लोगों के साथ बुरा बर्ताव किया जाता रहा है | अनेक अश्वेत लोगों को केवल इसी लिये मार दिया जाता है, क्यों कि उनका रंग काला है | आज भी अमेरिका में ‘ब्लॅक’ और ‘व्हाइट’ कह कर पुकारने की संकल्पना है | जिसके बारे में हम भारत में सपने में भी नहीं सोच सकते अमेरिका जैसा देश जो अपने आप को विकसित कहता है, सालों से अश्वेत लोगों के साथ करता आ रहा है | अमेरिका में जब बराक ओबामा को राष्ट्रपति पद का सम्मान मिला था, तब सभी अचंभित हुए थे | उस वक्त इस प्रकार की घटनाएँ ज्यादा सामने नहीं आई लेकिन उसके बाद फिर अश्वेत लोगों के साथ होने वाली हिंसा में वृद्धि हुई है |

गुलामी के समय में ब्लॅक अर्थात अश्वेत लोगों के साथ जानवरों से भी बुरा सलूक किया जाता था | फिर सिविल वॉर के पश्चात ‘ब्लॅक कोड’ आया जिसमें इस प्रकार की हिंसा को कानून के तहत सजा देने का प्रावधान बनाया गया | लेकिन उसके बाद भी हिंसा की ये घटनाएँ थमीं नहीं | आज अमेरिका में हो रहे प्रदर्शनों में प्रदर्शनकारियों का यही कहना है, कि “सालों से हमारे साथ यही होता आ रहा है | अमेरिका में जानवरों के साथ भी हमसे अच्छा व्यवहार किया जाता है | अब हम थक चुके हैं |” इससे पहले अमेरिका में ब्रेओना टेलर नामक एक अश्वेत महिला की हत्या के बाद भी ऐसे ही सवाल उठे थे |


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सवाल ये है कि जिन्हें हम इतना विकसित मानते हैं, जिस देश के सपने लिये हमारे यहाँ के नौजवान वहाँ जाते हैं, और उस देश की सरकार के लिये काम करते हैं | उस देश में केवल रंग के आधार पर कितना बडा भेद भाव किया जाता है, इतना कि रंग के आगे किसी व्यक्ति की जान भी दिखाई नहीं दती | आज भी हमारे यहाँ अमेरिका में नौकरी करने वाले लडकों को शादी के समय ज्यादा तवज्जो दी जाती है | जहाँ नौकरी करना, पढाई करना स्टेटस सिंबल माना जाता है, ऐसे देश की सोच कितनी पिछडी है, ये इन घटनाओं से स्पष्ट होता है | जॉर्ज क्रिमिनल था या नहीं, उसने गलती या गुन्हा किया था या नहीं ये बाद की बात है, लेकिन सरे आम लोगों के सामने इस तरह का सलूक कर किसी को मार डालना बद से भी बत्तर है | क्या हम इसी को Progress कहते हैं ?

- निहारिका पोल सर्वटे