क्या इसे Freedom Of Speech का गला घोंटना नहीं कहेंगे ?

04 Nov 2020 14:54:06

जब से सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु हुई है, अर्णब गोस्वामी इस नाम की काफी चर्चा हो रही है | प्रसिद्ध पत्रकार अर्णब गोस्वामी और उनकी रिपब्लिक मीडिया को कौन नहीं जानता? लेकिन आज उनका नाम चर्चा में आने का एक खास कारण है, आज अर्णब गोस्वामी को २०१८ के एक पुराने केस के संदर्भ में अलिबाग पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया | और फिर एक बार अर्णब गोस्वामी के समर्थन में देश खडा हो गया | इससे पहले काँग्रेस के खिलाफ बोलने के कारण, सोनिया गाँधी को एन्टोनियो कहने के कारण और सुशांत सिंह के केस में भी मुंबई पुलिस अर्णब के खिलाफ किस तरह से उतर कर आई है, ये सभी ने देखा है, लेकिन आज फिर एक बार अर्णब गोस्वामी के पीछे पुलिस जान बूझ कर हाथ धो कर पडी है, ये साबित हो गया है | और आज फिर एक बार इस बात से Freedom Of Speech का गला घोंटा गया है | 


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अर्णब पर आरोप लगाया गय़ा है कि उन्होंने २०१८ में इंटीरिअर डिझायनर अन्वय नाईक और उनकी माँ कुमुमद नाईक को खुदकुशी करने के लिये भडकाया था | यह केस २०१८ में ही ये कह कर बंद हो गया था, अर्णब के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं | इस केस में अर्णब के अलावा दो और लोगों पर भी आरोप दर्ज हैं | अन्वय ने मई २०१८ में खुदकुशी की थी, ५.४ करोड रुपये ना लौटा पाने की वजह से वो तनाव में था, उसकी माँ कुमुद ने भई खुदकुशी की थी | रायगढ पुलिस ने ये केस बंद कर दिया था | मई २०१९ में नयी सरकार आने के बाद अनिल देशमुख से अन्वय की बेटी ने गुहार लगाई थी, कि वे इस मामले की जाँच करवाएँ |

अब प्रश्न यब उठता है कि मई २०१९ से लेकर नवंबर २०२० तक से समय में राज्य के गृहमंत्री अनिल देखमुख क्या कर रहे थे ? उन्हें इस केस की याद तब क्यों नहीं आई? आज अचानक इस केस को रीओपन कर सीधे अर्णब गोस्वामी के घर जाकर उन्हें गिऱफ्तार किया गया | क्या यह Freedom of Speech का उल्लंघन नहीं है? क्या यह संविधान का अपमान नहीं हैं?

१९७७ में इंदिरा गांधी ने आपात्काल लगाया | आपात्काल तो देढ वर्ष बाद हट गया, लेकिन वो मानसिकता आज भी वैसी की वैसी है | आपात्काल लगाने वाले और आपात्काल का समर्थन करने वाले काँग्रेस और शिवसेना के नेता आज भी उस मानसिकता का समर्थन करते हैं | गौर करने वाली बात यह है कि, अर्णब गोस्वामी आज तक बिना डरे काँग्रेस और शिवसेना की पोल खोलने में लगे हुए हैं | उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत के केस में मुंबई पुलिस की भी पोल खोली है | इसलिये पुलिस द्वारा भी अर्णब गोस्वामी पर लगाए गए आरोप, उनकी १० घंटों तक बिना बात के की गई पूछताछ, साथ ही रिपब्लिक पर सरकार द्वारा लगाया गया बॅन बोलने और विचार रखने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है |

धीरे धीरे सच सभी के सामने आ रहा है | और रिपब्लिक भारत और अर्णब के प्रति देश का समर्थन बढता नजर आ रहा है |


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