“राम लला के लिये कुछ भी…” आईये सुनते हैं ‘डोसे वाली अम्मा” की कहानी…!

    29-Jan-2021   
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अक्सर हम दान स्वरूप वो चीज देते हैं, जो या तो हमारे पास अधिक होती है, या फिर हमारे किसी काम की नहीं होती | जैसे की धन या पुराने कपडे | लेकिन यदि मैं आपको बताऊँ कि आज भी दुनिया में ऐसे लोग हैं, जिनके पास वैसे देखा जाए तो मूल्यवान कुछ भी नहीं है, लेकिन उनकी दानत अमूल्य है | उनके मन की भावनाएँ, उन्हें किसी धनवान से भी ज्यादा अमीर बनाती हैं | आज की कहानी भी ऐसी ही है, ये कहानी है एक डोसे वाली अम्मा की कहानी |


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फिलहाल पूरे देश में अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर के लिये निधी इकट्ठा करने का कार्य चल रहा है, जिसमें हर कोई जितना हो सके उतना या शायद उससे भी ज्यादा समर्पण कर रहा है | धनवान लोगों के लिये, या अच्छा खासा कमाने वाले लोगों के लिये ये शायद उतनी बडी बात ना भी हो, लेकिन जिनका पेट रोज की कमाई पर चलता है, जिन्हें पता नहीं होता कि आज सुबह यदि उसे रोटी मिली है, तो शाम को मिलेगी की नहीं ? ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा पूरे एक दिन की कमाई राम लला के नाम से दे देना किसी भी अमूल्य दान से भी बढकर है |


मध्यप्रदेश के जबलपुर की अन्ना बस्ती, जो तेलगू भाषिक सफाई कर्मचारियों के नाम से प्रसिद्ध है | यहाँ पर सफाई कर्मचारियों का निवास है, और हर कोई मेहनत की कमाई करने वाला और अपने परिश्रम से अपने घर को पालने वाला है | जब राष्ट्रसेविका समिती की कुछ बहनें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बंधुओं के साथ यहाँ पर राम मंदिर के लिये निधी एकत्र करने गईं, तो उन्हें अविस्मरणीय अनुभव मिले | यहाँ के घर बहुत ही छोटे थे, लेकिन साफ सफाई इतनी की किसी भी सामान्य व्यक्ति को लजा दे | हर घर के सामने अल्पना बनी हुई, छोटे छोटे सुंदर प्रेम से सजे घर | इसी में से एक घर था, इन अम्मा का |


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घर के सामने एख छोटी सी टेबल लगी हुई थी | जिस पर एक छोटा स्टोव्ह था और साथ ही डोसे बनाने की सामग्री | अम्मा ने बडे प्यार से सभी का स्वागत किया | बिठाया | “डोसा खाओगी अक्का ?” यह भी पूछा | अम्मा के घर आने का उद्येश्य बताने के बाद और राम मंदिर निधी निर्माण के बारे में सब कुछ समझाने के बाद वे खुशी खुशी निधी देने तैयार हुईं | बस्तियों में दो तरह की रसीद बुक का उपयोग हो रहा है, एक १० रुपये की रसीद और एक १०० रुपये की | जिसको जितना देने का मन हो, वह उतना दे सकता है, फिर वह भले ही १० रुपये क्यों ना हो ? अम्मा ने भी १० रुपये निकाल कर दिये | फिर पता नहीं उनके मन में क्या आया ? अचानक वे बोलीं, “अक्का राम जी को घर नहीं है ? उनका घर के लिये पैसा ले रही हो ?” जब समिती की बहनों ने हाँ कहा, तो अम्मा ने उनकी दिन भर की कमाई २०० रुपये निकाल कर हाथ में दे दी और कहा.. “हमारा पास घर है अक्का, राम जी को घर नहीं है.. उनके लिये इतना तो मैं दे ही सकती |”


आप सोच सकते हैं, एक ऐसी अम्मा जिनका घर उस एक छोटे से टेबल पर चलता है, उसके लिये २०० रुपये की कीमत क्या होगी ? लेकिन “राम जी को उनका घर मिल जाए” इस लिये उन अम्मा ने अपनी दिन भर की मेहनत की कमाई एक झटके में दे दी | यही है भारत की सच्ची आस्था, और विश्वास | ये वो देश है, जहाँ भगवान को घर का एक सदस्य माना जाता है, ठंड में उन्हें गरम कपडे पहनाए जाते हैं | और उन्हें भोग लगाकर ही खाना खाया जाता है | इस श्रद्धा और आस्था की जीत ५ अगस्त २०२० को हुई जब राम मंदिर का भूमिपूजन हुआ |

जब एक “डोसे वाली अम्मा” अपना एक दिन का कमाया हुआ अमूल्य धन राम जी के लिये दे सकती है, तो हम सब आगे आकर अवश्य ही इस निधी में अपना सहयोग दे सकते हैं | यह राम मंदिर भारत का प्रतीक बनेगा, भारत की आस्था का, इस अम्मा के विश्वास का प्रतीक बनेगा | इसलिये आगे आएँ, और जब कभी कोई आपके यहाँ राम मंदिर निधी निर्माण के लिये समर्पण लेने आए, तो जो बन सके वह जरूर दीजिए | इन अम्मा का आदर्श लेकर आईये राम जी को उनका घर दिलवाएँ, अयोध्या के भव्य राम मंदिर निर्माण में अपना भी एक अमूल्य योगदान दें |


- निहारिका पोळ सर्वटे