बोस :- एक ज्वालामुखी

    05-Sep-2020   
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“नेताजी” “सुभाष बाबू” या फिर “बोस” इन सभी नामों से पुकारे जाने वाले भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति याने “श्री सुभाष चन्द्र बोस” |


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नेताजी का जीवन याने भारतीय इतिहास का वो गरिमामय अध्याय है जिसमे भारत वासियों ने आत्मसम्मान से जीना सीखा था। विस्फोटक चरित्र, मजबूत शरीर और प्रखर बुद्धि के धनी सुभाष बाबू अंग्रेज़ो और कॉंग्रेस दोनों की आँख का नश्तर थे। वे सशस्त्र क्रांति चाहते थे, शुरुवाती दौर मे वे गांधीजी के भक्त थे परंतु बाद मे वे जान चुके थे की इन अंग्रेज़ो को अहिंसा से नहीं बल्कि बंदूक से भगाना पड़ेगा।


इसलिए काँग्रेस मे काफी समय रहने के बाद उन्होने अपने खुद की एक पार्टी का निर्माण किया था। एक महान देशभक्त होने के साथ ही सम्पूर्ण भारत के लिए प्रेरणास्वरूप थे, जितना उनका जीवन दिलचस्प रहा उतनी ही उनकी मृत्यु रहस्यमयी थी, वे जब तक जीवित थे, अंग्रेज़ो की नींद-चैन सब उड़ चुकी थी, पर उनकी मृत्यु के पश्चात तो ब्रिटिश अधिकारी पागल होने की स्थिति मे आ गए थे, सब उलझन मे थे की बात क्या है पर सच कभी किसी को पता नहीं चला......


18 अगस्त 1945 के दिन एक प्लेन क्रेश होता है शायद ताइवान मे या फिर जापान मे कही.......और भारत में खबर आती है की उस प्लेन क्रेश मे नेताजी की मौत हो गयी। अब वो कितना सच था ये कोई जान नहीं पाया कभी,

और ना ही कभी उनके शव के बारे मे पता चल पाया, जिनका अंतिम संस्कार हुआ वो नेताजी थे या नहीं थे भगवान जाने!!!! ये रहस्य आज भी बना हुआ है, 1945 के बाद अनेकों बार नेताजी को दुनिया के अलग-अलग देशो मे देखे जाने की खबर मिली।


कभी पेशावर कभी बर्मा तो कभी रशिया........


पर जो देखे गए वो नेताजी ही थे या कोई और ये शायद कोई नही जानता है।

उनकी आक्रामक सोच, एक अनोखी शैली और तेज दिमाग के सभी कायल थे, ब्रिटिश हो या जर्मन तानशाह हिटलर.....



दुनिया का कोई भी जासूस इतने रूपों मे नहीं देखा गया होगा जितने सुभाष बाबू भेस बदल लेते थे।

चाहे बचपन में भाग कर महाभारत देखना हो या फिर किसी गोरे साहब को मजा चखाना हो, सुभाष बाबू सबसे आगे होते थे। स्वतंत्र विचार, आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान ये गुण उनके अंदर कूट-कूट कर भरे थे।

नेताजी के जीवन के घटनक्रमो पर आधारित है हमारी आज की वेबसीरीज


"Bose -Dead or Alive”


“ये कहानी है सुभाष चंद्र बोस की जिनका अंत सौ कहानियो का आरंभ था”


ऐसे दमदार वाक्य के साथ ये सीरीज शुरू होती है,


दोस्तो जैसा की हम देखते है अधिकतर वेबसीरीज मे अश्लीलता, खराब भाषा और वीभत्स दृश्यों की भरमार होती है, हम अपने पूरे परिवार के साथ बैठ कर कभी देख नहीं पाते ऐसी कहानिया होती है.....पर बोस जैसी वेबसीरीज ना केवल आपका परिवार बल्कि आपके छोटे बच्चे भी देख सकते है।

और उनको जरूर देखना चाहिए जिससे उनको पता चले की देश की आजादी के लिए नेताजी जैसे लोगो ने कैसे अपना सम्पूर्ण जीवन झोंक दिया था।


इस सीरीज की यह खासियत है की इसमे उनके जीवन की अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाओ को चुन-चुन कर चित्रित किया है, हर छोटी से छोटी बात और बड़ी से बड़ी घटना सबका वर्णन बखूबी किया है। इसकी कहानी 18 अगस्त 1945 के दिन हुये हवाईजहाज के हादसे से शुरू होती है, और उसके बाद शुरू होता है उनके जीवन का चित्रण.....

बचपन मे घर से भाग जाना हो या फिर कॉलेज मे अंग्रेज़ प्रोफेसर की जूतो से पिटाई........


ये सारी बाते आपका ध्यान आकर्षित करती है, उनका तेज-तर्रार स्वभाव और वक़्त पड़ने पर अत्यंत शांत और गंभीर रवैया बखूबी दिखाया गया है, पर्दे पर जब आप कलाकारो को देखते हो तो आप उसी दुनिया मे पहुँच जाते हो।

पहले ही एपिसोड मे आपकी उत्सुकता इतनी चरम सीमा पर होती है की आप सीरीज पूरी देखे बिना रह नहीं पाते हो, उनके जीवन के सभी महत्वपूर्ण घटनाक्रम जैसे उनकी पढ़ाई उसके बाद आगे पढ़ने के लिए विदेश जाना, सिविल सर्विस की परीक्षा में अव्वल आने के बाद लौटकर वापस आ जाना.....


सब कुछ छोड़ कर केवल देश की स्वतन्त्रता के बारे मे सोचना सब कुछ अद्भुत है, एक बहुत ही अच्छी बात जो अधिकतर सामने नही आ पाती वो है उनके परिवार का साथ , इस कहानी के माध्यम से हमें पता चलता है कि एक क्रांतिकारी का जीवन जितना मुश्किल होता है उतना ही उसके परिवार को भी अंगारों पर चलना पडता है। सुभाष बाबू का परिवार, उनकी माता हो या बडे भाई -भाभी , यहां तक छोटे से भतीजे ने भी कभी भेस बदल कर तो कभी उनकी आज्ञा का पालन करके आजादी के यज्ञ में अपनी आहुती डाली है। इसी प्रकार उनका जर्मन परिवार , उनकी पत्नी ऐमिली ,डॉ. माथुर और ऐमिली की मां ने हर कदम पर साथ खडे रहकर उन्हे समर्थन दिया।



ब्रिटिश राज मे भारतीयो पर होने वाले अत्याचार, अंग्रेज़ो का लूट-खसोट भरा व्यापार, बाहर से सस्ता माल आयात करना और भारत मे उसे दुगुने मुनाफे पर बेचना, ये सभी बाते उनको खटकती रही और इस सबको रोकने के लिए उन्होने पुरजोर प्रयत्न किए।

भारत एक आत्मनिर्भर देश के रूप मे उभर कर सामने आए, बेवजह सामान आयात न करना पड़े, जिससे यहा का पैसा यही रहे यही उनकी इच्छा थी, ठीक इसी तरह भारत के सिपाही ब्रिटेन की फौज मे भर्ती होकर उनके लिए अपनी जान दे इसके वो सख्त खिलाफ थे.....वे चाहते थे की भारत की एक अपनी सेना हो जिसमे सभी भारतीय जवान अपने देश की रक्षा के लिए लड़ें।

अपने इस विचार को फलीभूत करने उन्होने आजाद हिन्द फौज का निर्माण भी किया इसी के साथ औरतों को भी अपनी रक्षा और साथ ही देश की रक्षा करते बनें इसलिए अपनी फौज मे महिलाओं की एक टुकड़ी भी तैयार की।


वे अपने ऐसे तीखे विचारों के कारण ब्रिटिश राज की आंखो की किरकिरी बने हुये थे, उनके अनेकों बार जेल मे डाला गया, नजरकैद किया गया, सख्त पहरों मे रखा पर इस सब का उनपर कोई असर नहीं हुआ, वे अपना काम पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करते रहे।


“दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त” इस तर्ज पर चलने वाले बोस बाबू ने भारत की आजादी के लिए विदेशी ताकतों का इस्तेमाल करने की कोशिश की, रशिया और जर्मनी जैसे देश जो ब्रिटेन के खिलाफ थे, वो उनके साथ मिलकर अंगेजी ताकतों को उखाड़ फेकना चाहते थे, और काफी हद तक वो अपने इरादों मे कामयाब हो चुके थे।


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पर अफसोस उन्हे भारत और यहां के तथाकथित उच्चपद पर बैठे हुए लोगों से किसी प्रकार की मदत नही मिली,

इसके विपरीत यहां भारत में उनके नाम का अरेस्ट वारंट जारी किया गया , देखते ही गिरफ्तारी और गोली मारने का आदेश निकाला गया, उनके बारें में बाते फैलाई गयी कि वे हिटलर से मिलकर भारत पर आक्रमण करना चाहते हैं।

और जब हम आजादी के करीब पहुंच चुके थे , नेताजी की फौज आक्रमण करके ब्रिटिश राज को खत्म करने के लिये तैयार खडी थी उसी बीच एक दिन खबर आती है की सुभाष बाबू नहीं रहे और सबकी उम्मीदे खतम हो जाती है।


ब्रिटिश राज और साथ ही काँग्रेस के प्रमुख नेता चैन की सांस लेते है की उनके ऊपर लटक रही तलवार अब हमेशा हमेशा के लिए खतम हुई,क्यूंकि भारत में बैठे सत्ताधारियों केवल सरकार बनाने से मतलब था आजादी से नही.......



पर वे नही जानते थे कि हिटलर के "बोसे" कोई साधारण आदमी नहीं थे , एक प्लेन क्रेश उन्हे खत्म कर दे इतने साधारण तो बिलकुल भी नही.......


वे सामने ना रह कर भी इन ब्रिटिश राज और भारतीय राजनीतिज्ञों की नींदे उड़ाते रहे....


और कुछ ही दिनों में आस-पास के देशों से खबरें आने लगती है की नेताजी वहाँ पर है और जिंदा है, पर कभी पुष्टि नहीं हो पायी की सच क्या है।


हा बस अंग्रेज़ो के सपने मे वो आने लगे और एक पल के लिए तो नेहरू जी को भी लगने लगा की वो कभी भी वापस ना आए तो ही अच्छा.....


ऐसी रोमांच से भरी और सुभाष चंद्र बोस जी के व्यक्तित्व पर आधारित ये वेबसीरीज आपकी आंखो मे आँसू जरूर ला देगी....


एक खतरों से भरा जीवन और रहस्यमयी मृत्यु आपको अंदर तक झकझोर देगी.....किसी पल आपको गुस्सा आएगा क्यूंकि जो बर्ताव उनके साथ किया गया वो देख के आप उस समय की असलियत पता चलेगी।


उनका विद्रोह, स्वतन्त्रता प्राप्ति की तड़प और लगन उनका अंदाज़ सब कुछ आप इस सीरीज मे देख पायेंगे।



“आजादी लड़ कर हासिल होती है मांग कर नहीं”

“तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूंगा”



ऐसे दमदार वाक्य इस कहानी की आत्मा है।


ब्रिटिश ऑफिसर स्टेनली और कॉन्स्टेबल दरबारी, नेताजी के बड़े भाई-भाभी, माता-पिता और दोस्त, उनकी पत्नी ऐमिली शेंकल, उनके डॉक्टर माथुर सबने जैसे इस कहानी मे जान डाल दी है।


एक-एक घटना स्पष्ट और सामयिक है, उनकी मुखरता, निडरता और साहस हर जगह नजर आता है।

सबसे ज्यादा प्रभावित करता है इस कहानी का संगीत.....


ऊर्जा से भरा.....


शीर्षक गीत सुनने के बाद आप खुद-ब-खुद उस दौर मे पहुँच जाते है ऐसा लगने लगता है कि हम इस कहानी का एक पात्र है।


सबसे आकर्षक पहलू है इस सीरीज की कास्ट....


राजकुमार राव अपने आप में एक सम्पूर्ण कलाकार है। बोस के चरित्र मे वो ऐसे लगें है जैसे स्वयं सुभाष बाबू ही हमारे सामने हो।


चाहे कॉलेज का युवा सुभाष हो या फॉरवर्ड ब्लॉक के अनुभवी मेयर बोस बाबू, राजकुमार ने हर जगह अपनी छाप छोडी है।

एक और खास चरित्र है ब्रिटिश राज का भारतीय कॉन्स्टेबल दरबारी याने नवीन कस्तूरिया.....


जब-जब दरबारी स्क्रीन पर आता है आपको अपनी एक्टिंग से प्रभावित किए बिना नहीं जाता.......


सबसे खास बात इस कहानी में किसी भी ऐतिहासिक तथ्य के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी।


यह सीरीज 2012 की एक किताब “इंडियास बिगेस्ट कवरअप” पर आधारित है जिसके लेखक अनुज धार है।


अल्ट बालाजी पर प्रसारित की गयी ये कहानी रेशूनाथ द्वारा लिखी गयी व पुलकित इसके निर्देशक है।


इस सीरीज का दमदार संगीत नील अधिकारी का है, सुभाष चंद्र बोस जैसे महान देशभक्त को भी इस देश मे कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था क्यूंकि बाहरी शत्रु से लड़ने मे हम सक्षम होते है पर जब अपने ही देश के अपने साथी आपके ना हो तो इंसान अकेला पड जाता है, नेताजी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

आज इतिहास के पन्नों मे उनका नाम कही खो गया है, गुमनाम हो गया है, आखरी बार उन्हें शास्त्रीजी के साथ ताशकंद में 1966 में देखा गया था ऐसा कुछ लोग मानते है।


उसके बाद वो गुमनामी के अंधरों मे खो गए.......पर इस कहानी को देख कर हमे यह पता चलता है की वाकई आजादी की कीमत क्या थी।


ये वेबसीरीज एक श्रद्धांजली है आजादी के दीवाने सुभाष बाबू को जो भारत के स्वतंत्र होने के बाद इस मिट्टी को छू भी नहीं पाये, आजाद भारत की हवा में सांस नही ले पाये।

जय हिंद जय भारत........

प्रगती गरे दाभोळकर