जिंदगी ‘गुलज़ार’ है...

    18-Aug-2020   
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गीतकार जब पन्नों पर शब्दों की जगह भावनाएं उतारने लगे तब वो ‘गुलज़ार’ हो जाता है। गुलज़ार के जीवन की, उनके प्रतिभा की यही उपलब्धि है कि वे केवल एक नाम न रहकर सफलता का आयाम बन चुके है। तो आईएं गुलज़ार के ८६वें जन्मदिन पर उनके कुछ खूबसूरत गीतों और शायरी का लुत्फ़ उठाएं।
 
“जंगल-जंगल बात चली है, पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है, फूल खिला है...”
९० के दशक के सभी लोगों की बचपन की याद का हिस्सा है रविवार सुबह दूरदर्शन पर मोगली देखना। गुलज़ार के बोल और विशाल भरद्वाज के संगीत से बने ‘मोगली’ का मुख्य गीत तो आज भी कईयों के जुबान पर है।

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“हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिये, खुले आम आँचल न लहरा के चलिये...”
गुलज़ार और आर. डी. बर्मन की जोड़ी ने भारतीय फिल्मों के गीतों को एक नए मुकाम पर जा पहुंचाया। इस जोड़ी ने कितने ही गीतों को प्रेम राग, तो कितनों को दुखागाथा बना दिया। इनकी कई शानदार पेशकशों में से एक है.....
 
“बहुत खूबसूरत है हर बात लेकिन
अगर दिल भी होता तो क्या बात होती....
लिखी जाती फिर दास्तान-ए-मुहब्बत,
इक अफ़साने जैसी मुलाक़ात होती...”
 
 
“तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी, हैरान हूँ मैं, हो हैरान हूँ मैं,
तेरे मासूम सवालों से, परेशान हूँ मैं, हो.... परेशान हूँ मैं, परेशान हूँ मैं”
वर्ष था १९८२, हिंदी फिल्मों के बेहतरीन दिग्दर्शकों में गिने जानेवाले शेखर कपूर ने अपनी पहली फिल्म रिलीज़ की – मासूम। जिंदगी की मुश्किलों से मुंह तो फेरा नहीं जा सकता, लेकिन गुलज़ार के बोल उस मुश्किल घडी में भी सुकून दे जाते है, मन हल्का कर देते है।
 
 
“तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई, शिकवा तो नहीं.....”
गुलज़ार की विशेषता ही रही है कि वे साधे से शब्दों में भी भावनाओं का ऐसा चित्र खड़ा कर देते है कि वह गीत हर किसी के दिल में समां ही जाता है। उनमें से ही एक है “तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई, शिकवा तो नहीं....”
 
 
“तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतियाँ......”
गुलज़ार के बोल, ए.आर. रहमान का संगीत; “तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतियाँ......” इस गीत से अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन की जोड़ी सभी के दिल में बस गई। प्यार भरी नोक-झोंक और एक-दुसरे से मिलने की आस; गुलज़ार ने इस गीत से कितने ही प्रेमियों के दिल का हाल बयान किया है।
 
 
गुलज़ार ने जैसे अपने गीतों से सुकून दिया, अपनी शायरी से प्रेरणा दी है. उनकी शायरी आपको इश्क भी सिखाती है और दुनियादारी भी; दर्द से वाकिफ कराती है और दुआओं की ताकत भी बताती है –
 
Gulzar on how an 80-year-old Urdu poet stays relevant in Bollywood ... 
“खुली किताब के सफ्हें उलटते रहते है।,
हवा चले न चले, दिन पलटते रहते है।।”
 
“कितना भी पकड़ लो फिसलता जरुर है,
यह वक्त है साहब बदलता जरुर है!”
 
“ख़्वाब क्या देखेंगे थके-हारे लोग,
ऐसे सोते है के मर जाते है!”
 
“साइकिल भी पहचानती थी मोहब्बत की राहें,
चैन भी उतरती थी तो उसी के मोहल्ले में”
 
“वक्त भी हार जाते है कई बार जज्बातों से,
कितना भी लिखों, कुछ न कुछ बाकी रह जाता है...”
 
संपूर्ण सिंह कालरा उर्फ़ गुलज़ार को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं!