Short and Crisp : बहुत ही लजीज पका है ये, “खयाली पुलाव”

    10-Jul-2020   
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हरियाणा की छोरियों की कई कहानियाँ आपने देखीं होंगी, सुनी होंगी | लेकिन ये कहानी उन सब से अलग है | सभी की चहेती ‘मोस्टली सेन’ याने की प्राजक्ता कोळी लेकर आईं है, “खयाली पुलाव” | आशा नाम की एक हरियाणवी लडकी की कहानी | जो अलग है, प्यारी है, मासूम है, और बहुत कुछ सिखा के जाती है | आईये देखते हैं, कैसे पका है ये खयाली पुलाव |


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ये कहानी है, आशा की | हरियाणा के एक गांव में रहने वाली एक होनहार लडकी | जो स्कूल में हमेशा अव्वल आती है | एक दिन उसके स्पोर्ट्स टीचर क्लास में आकर बताते हैं कि, स्कूल में हँडबॉल की टीम के लिये सिलेक्शन होने जा रहा है, जिसे भी भाग लेना है, आ जाए | आशा भी वहाँ पँहुच जाती है | क्यों वो हमेशा से लडकों को ये खेल खेलता हुआ देखती आई है, और सच पूछें तो वह भी ऐसा कुछ करना चाहती है, जिससे उसे ‘आजाद’ महसूस हो | जैसी आजादी शायद लडकों को मिलती है | वह इसी एक सपने को लेकर वह पँहुच जाती है | 

धीरे धीरे सब उसे बताते हैं कि ये स्पोर्टस वगैरा उसके बस की ना है | वो नहीं कर पाएगी | उसके सर उसे बोलते हैं, उसकी दोस्त , उसकी टीचर यहाँ तर की उसकी माँ भी | लेकिन वही प्यारी माँ उसे प्रॅक्टिस के लिये गेंद भी बना कर देती है | इस कहानी का अंत बहुत कुछ बता कर जाता है | ये किसी आम कहानी की तरह नहीं है, कि लडकी ने मन में ठाना “और छोरियाँ छोरों से कम है के” की तर्ज पर कर के दिखाया | क्यों कि हँडबॉल खेलने का आशा का मकसद ही अलग है | और यही मकसद इस कहानी की जान है | 

सबसे खूबसूरत बात इस ‘खयाली पुलाव’ की यह है, की आज भी हरयाणा जैसी जगह पर जहाँ पर टिपिकली “छोरों” को “छोरियों” से कहीं ज्यादा आजादी होती है, जहाँ पर छोरियाँ यदि “फेसबुक” पर अपनी जीन्स पहनी फोटोज भी पोस्ट कर दें, तो उन्हें चरित्रहीन समझा जाता है, वहीं आशा का केवल एक सपना है, हँडबॉल की वो ड्रेस पहन कर खेलना, कुछ करना खुद के दम पर, ‘आजाद’ मससूस करना | कितना छोटा सा है ना ये सपना, लेकिन कितना बडा है ये आशा के लिये | 

प्राजक्ता कोळी ने आशा का किरदार दिल से निभाया है, हाँ शायद उनकी छवि ऐसी है कि उनमें वो हरियाणवी टच एकदम से डायजेस्ट नहीं होता, लेकिन उनका अभिनय कमाल का है | इस शॉर्टफिल्म में दो गाने हैं, जिनमें से एक ‘मत कर’ आपके दिल को छू जाता है | हर कोई जब आशा को कह रहा होता है कि ये ‘मत कर’ तब उसका दिल उसे बताता है कि तब यही कर | शायद हम सभी के साथ कई बार ऐसा ही होता है ना ? 



जब उसे सर कहते हैं कि ठीक है अटैकर ना सही “तुम गोल कीपर का ट्राय करो” तो उसे उसमें भी मजा आता है | क्यों कि आशा का मकसद ही अलग है | आशा कुछ पैसे देकर एक लडके के मोबाइल में व्हिडियोज देखती है, सोशल मीडिया पर एक्सप्लोर करती है | ये व्हिडियोज सामान्य होते हैं, लेकिन आशा के लिये ये बडी बात है क्यों कि उसने वो जिंदगी कहीं देखी ही नहीं | इन व्हिडियोज में वो हँडबॉल के नये तरीके सीखती है | अप्लाय भी करती है | आशा का एक डायलॉग “तू नहीं समझेगा, तू छोरा है ना !!!” काफी कुछ कह जाता है | 

आशा मासूम है, प्यारी है, और एक वंडर वुमन भी है | (इसका रेफरेंस आपको यह शॉर्टफिल्म देखकर समझ आएगा |) इस शॉर्टफिल्म को लिखा और निर्देशित किया है तरुण डुडेजा ने | स्पोर्ट्स टीचर के किरदार में प्रसिद्ध अभिनेता यशपाल शर्मा ने काम किया है | उन्होंने गांव के स्कूल के टीचर का किरदार बखूबी निभाया है | 

आज भी जहाँ समाज में, खासकर गाँव में लडकों को लडिकयों से ज्यादा आजादी हैं, वहाँ आशा जैसी खयाली पुलाव पकाने वाली लडकियों की बहुत जरूरत है | शायद यही खयाली पुलाव एक दिन यह स्थिती बदल सकेगा |