सब कह रहे हैं हमसे बात करो.. क्या कोई पूछने को तैय्यार है ?

    17-Jun-2020
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सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु को आज तीन दिन हो चुके हैं | लेकिन सोशल मीडिया और सामान्य मीडिया पर इस विषय की चर्चा थमने का नाम नहीं ले रहीं | जहाँ एक ओर सामान्य मीडिया ने हर हद पार कर दी है सुशांत की जिंदगी में झाँकने की, वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर हर सामान्य आदमी स्टेटस डाल रहा है कि मेरे घर के दरवाजे खुले हैं, आओ मुझसे बात करो !!! तो इसी विषय पर कुछ थोडा सा… बात चुभ सकती है, लेकिन सच तो कडवा होता ही है |


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तो कईयों ने अपने अपने स्टेटस बदल कर रख लिये कि, कि हमें सुनना चाहिये, हमारे दरवाजे खुले है, कोई बात करना चाहता है तो हम सुनेंगे | एक बात तो सही है कि डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ को अब बहुत ही ज्यादा सीरीअसली लेना आवश्यक हो गया है | लेकिन “आप आओ हम बात करेंगे..” ये कहना आसान है, क्या करना उतना आसान है | जो इस समस्या से जूझ रहा है, उसे समझ नहीं आ रहा वह किसपे विश्वास करे | मेंटल हेल्थ ठीक ना होने पर आप मन से दु:खी, डरे हुए, कन्फ्यूज्ड होते हैं, ऐसे में किससे बात करें ये पता नहीं होता, ऐसे में एक बी बात हम बार बार करते हैं, ऐसे में अपने इमोशन्स समझ पाना कठिन होता है, तो इस तरह की कठिन परिस्थिती में कोई हमसे आके बात करे, ऐसी अपेक्षा हम कैसे रख सकते हैं, Randomly कोई आप पर क्यों विश्वास रखेगा ? वह विश्वास बनाना और बढाना जरूरी है, है ना? क्या हुआ यदि हम खुद ही किसी दोस्त को एक मॅसेज कर के पूछ लें, भाई बडे दिन से तेरा फोन नहीं आया सब ठीक है ना? क्या हुआ यदि हम अपने भाई बहनों को फोन कर के एक बार पूछ लें कि क्या चल रहा है, क्या हुआ कि कभी हम अपने माँ पिताजी या बच्चों से बातों बातों में ही पूछ लें कहीं वे परेशान तो नहीं, कहीं वे दु:खी तो नहीं, और यदि हैं तो छोटी छोटी बातें अक्सर ट्रिगर कर जाती हैं, तो ऐसी बातों पर धोडा विशेष ध्यान दें | आप हर वक्त समझ पाएँगे? उत्तर है नहीं !!! आपकी कोशिश हमेशा रंग लाएगी, आप हमेशा मदत कर पाएँगे? उत्तर है नहीं | लेकिन आप कोशिश कर के देख सकते हैं |

कोई अपनी परेशानी बताने के लिये हमें फोन या मॅसेज करें ये अपेक्षा ही क्यों रखना ? हम स्वयं भी पूछ सकते हैं, पता कर सकते हैं, बात कर सकते हैं | सामने वाले को मदत वैसी करो जैसी उसे जरूरत है, वैसी नहीं जैसी तुम्हें लगता है कि उसे जरूरत है | आज वे लोग भी स्टेटस डालते नजर आते हैं जिन्होंने शायद अपने स्कूल के बाद उस अजीज बेंचपार्टनर को एक बार भी मॅसेज कर के फोन कर के बात ना की हो | या फिर वो जो पहली नौकरी में साथ था, लेकिन अब कहाँ है पता नहीं | जरूरी नहीं की आप सबकी मदत कर पाएँ, हाँ लेकिन जो आपके करीबी हैं, उनके लिये आप कोशिश कर के देख सकते हैं |


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बॉलिवुड ने शायद सुशांत को अकेला कर दिया था, आज सब उसकी मौत पर सोशल मीडिया पर दिखावा करेंगे, दो आँसू बहाएँगे और भूल जाएँगे | लेकिन मेंटल हेल्थ और डिप्रेशन ये किसी एक फील्ड से जुडी समस्या नहीं है | आज अपने आप को स्वयंघोषित डॉक्टर, मेंटल हेल्थ हेल्थ स्पेशलिस्ट काफी ज्ञान की बात कर रहे होंगे.. लेकिन यह सबके बस की बात नहीं है, उसके लिये किसी एक्सपर्ट की सलाह लेना आवश्यक है | तो यदि आप किसी की मदत करना चाहते हैं, तो उसे बिना जज किये मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट तक लेकर जाएँ, और इस पूरी यात्रा में नि:स्वार्थ भावना से उसका साथ निभाएँ |

और जो भी किसी से बात करना चाहते हैं, दोस्त ना भी हों ना दोस्तों तो चलेगा, कभी माँ बाप से बात करके देखना, वे सब जानते हैं | और जितनी फिक्र तुम्हारे परिवार को तुम्हारी होगी उतनी दुनिया में किसी और को कभी नहीं हो सकती | तो परिवार में संवाद बनाए रखें | जहाँ तक हो सकें, अपनी माँ से अपने पिताजी से अपनी सारी समस्याएँ साझा करें | शायद आज उन्हें चिंता होगी, लेकिन ना बताने से बात बढने से वे जो सहेंगे उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते | अपने अभिभावकों से बात कर के देखें, माँ से बात कर के देखें, वह सब जानती है |

“मुझसे बात करने आओ मैं सुनूंगा/ सुनूंगी” कहने से पहले एक बार आप ही अपनों से पूछ लें.. “क्यों कैसे हो सब ठीक है ना?” असर ज्यादा होगा…!!!!