#BoysLockerRoom हो या #GirlsLockerRoom है तो समाज पर लगा एक धब्बा ही..

    06-May-2020   
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- निहारिका पोल सर्वटे 


तीन दिनों से #BoysLockerRoom पर पूरी सोशल मीडिया पर बडे पैमाने पर चर्चा हो रही है | और ये चर्चा है कि थमने का नाम ही नहीं ले रही | चॅट्स व्हायरल होने का ये सिलसिला थमा ही नहीं था कि, #GirlsLockerRoom भी व्हायरल होने लगा | और समाज की एक और घिनौनी तस्वीर सामने आ गई | समाज में ‘जेंडर’ आज उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा, महत्वपूर्ण है सोच | फिर वह चाहे किसी भी ‘जेंडर’ की क्यूँ ना हो | जैसे अश्लील चॅट्स #BoysLockerRoom से बाहर आये थे, वैसे ही अब #GirlsLockerRoom के लडकियों के अश्लील चॅट्स भी सामने आए हैं | और इनकी भी उम्र १८ साल से कम ही है | याने कि, टीनएजर्स फिर चाहे वे लडका हों या लडकी इस तरह के जंजाल में फँसे हुए हैं | दोनों की ही मानसिकताएँ गंदी हैं, समाज पर लगा एक धब्बा है, और देश को गलत दिशा में ले जाने वाली हैं | 


Girls Locker room_1 




इस मामले में कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातें हैं जिन पर ध्यान देना आवश्यक है :


१. क्या सिर्फ लडकों की ही गलती है : #GirlsLockerRoom लडकियों की मानसिकता दिखाती है कि, चीप मानसिकता पर सिर्फ लडकों का ही कॉपीराइट नहीं हैं, लेकिन होता ये है कि, लडकियों को कमजोर मान कर उनकी इन बातों की तरफ बेध्यानी कर दी जाती है, और हमेशा विक्टिम कार्ड लडकियों के हाथ में ही रहता है | लेकिन ये चॅट्स पढने के बाद समझ आता है कि, गलती दोनों तरफ से है, जितना खतरनाक ओपनली बलात्कार की चर्चा करना है, उतना ही खतरनाक ओपनली लडकों के बारे में अश्लील बातें करते हुए इस प्रकार से घिनौनी सोच दर्शाना है | आदर केवल लडके. लडकियों का ही करें ये जरूरी नहीं आदर लडकियों को लडकियों का भी करना चाहिये, और लडकों का भी | यहाँ जेंडर से फर्क नहीं पडता, क्यूँ कि आदर किसी का जेंडर देख कर नहीं करना चाहिये | लेकिन ये इन टीनएजर्स को समझाया कैसे जाए ? 



२. क्या इस #GirlsLockerRoom से #BoysLockerRoom का जुर्म कम हो जाता है ? :
तो इसका उत्तर है नहीं | लडके करते हैं, इसलिये लडकियों को करने की आजादी नहीं है, और लडकियाँ करती हैं, तो लडकों को भी इस तरह से घिनौनी सोच रखने का लायसंस नहीं मिल जाता | प्रश्न ये है कि इस तरह की सोच आती कहाँ से है | और यदि आती है तो इस विषय में खुल कर इन टीनएजर्स से बात कितने घरों में की जाती है? संवाद की आवश्यकता है | मैं फिर दोहरा रही हूँ, गंदगी दोनों ओर से उछली है |



३. क्या आदर सिखाना पडता है ? : हम वैसे ही बनते हैं जैसे हम घर में अपने बडों को देखते हैं | इसका यह मतलब है क्या कि जो बच्चे इस तरह की गंदी सोच रखते हैं, उनके घर में आदर का वातावरण नहीं है? लोगों का सम्मान करना नहीं सिखाया जाता ? उत्तर है नहीं, कुछ दिन पहले एक वाकया सामने आया था, जिसमें पता चला कि एक चौथी क्लास का बच्चा किसी लडकी को पसंद करता है, और वो उसे पाना चाहता था, उसने दोस्त से पूछा कि क्या किया जाए, उसके दोस्त ने जवाब दिया शारीरिक संबंध बनाओ फिर वह तुम्हें पसंद करेगी, स्कूल की टीचर ने यह संवाद सुना और प्रिंसिपल के पास ले कर गये | बाद में पता चला इंटरनेट पर आने वाले पॉप अप एड्स के कारण उसने गलती से पॉर्न साइट्स देखी, और बाद में एडिक्ट हो गया | मैं याद दिलाना चाहूँगी कि ये ‘चौथी’ क्लास के बच्चे हैं | इस तरह से ये बच्चे इस दुनिया में कदम रखते हैं, और चाहे वो लडका हो या लडकी, उन्हें ये सब नॉर्मल लगने लगता है | 

४. तो आगे क्या करना होगा ? : संवाद आवश्यक है | खुला संवाद | आज भी हमारे घरों में ‘सेक्स एज्युकेशन’ को तवज्जो नहीं दी जाती | इस उम्र के बच्चे इंटरनेट से काफी पहले से जुड जाते हैं | ऐसे में पॉप अप एड्स, साइट्स, टिकटॉक व्हिडियोज, और इंस्टाग्राम से भी अश्लील फोटोज देखने, उसके प्रति आकर्षण रखने में उन्हें कुछ गैर नहीं लगता | इसलिये प्रॉपर सेक्स एज्युकेशन, खुला संवाद, लडकों या लडकियों के प्रति आकर्षण के बारे में बातचीत, चॅट्स पर होने वाली बातचीत के बारे में खुला संवाद, और ऐसा वातावरण जिससे वे खुल कर बात कर पाएँ, देना आवश्यक है | बलात्कार की भाषा चाहे लडकी की जबान पर हो या लडके की, है तो जुर्म ही | 



लेकिन क्या इसे कहेंगे कि “लडके हैं / बच्चे हैं गलती हो गई” ? तो नहीं बिल्कुल नहीं | यदि वे ‘बलात्कार’ की चर्चा कर रहे हैं, तो ये बलात्कार जैसे भीषण जुर्म जितना ही भयानक जुर्म कर रहे हैं | इसलिये ये बात बहुत ही गंभीर है, भयंकर है | इस तरह की सोच पर लगाम लगाने के लिये क्या सिर्फ इंटरनेट को दोष देना चाहिये ? तो नहीं, दोष इंटरनेट का है ही, लेकिन यदि यह इंटरनेट नहीं होता तो शायद ये लॉकररूम टॉक्स बाहर भी नहीं आते | तो इस इंटरनेट का उपयोग कैसे करना है, कितना करना है ? और किस उम्र में किस तरह से करना है इस बात पर बहुत बहुत ज्यादा ध्यान देना आवश्यक है | 

घर की लडकियों को समझाना होगा, कि फेमिनिझम का अर्थ लडकों को गंदी गंदी गालियाँ देना नहीं होता | लडकों को अपनी किसी भी प्रकार की कोई भी फोटो ना भेजें ये उन्हें बताना समझाना जरूरी है | और लडकों को भी ये बताना जरूरी है कि लडका और लडकी में कोई भेद नहीं होता, तो उन्हें मिलने वाले आदर में भी कोई भेद नहीं होना चाहिये | बदकिस्मती से हम आज ऐसे समाज में जी रहे हैं, जहाँ लडके लडकियों पे बलात्कार करते हैं, और लडकों पर भी, भले ही ये बातें सामने ना आयें | ये बात जेंडर से ऊपर उठ कर सोचना जरूरी है | और सिर्फ वेस्टर्न कल्चर को दोष देने से कुछ नहीं होगा, समाज ग्लोबल होता जा रहा है, साथ साथ समाज में होने वाले जुर्म भी | 

ये एक भीषण सोच है, जो कॅन्सर की तरह हमारे समाज को खत्म कर देगी | इसके पहले की आपके घर का कोई ‘टीनएजर’ इसका शिकार बने इससे बचने के लिये कदम उठाएँ | संस्कार तो हमारे यहाँ दिये ही जाते हैं | लेकिन वे मजबूत रहें इसलिये उसे बार बार पॉलिश करना जरूरी है, जो संवाद से ही हो सकता है |

जिन्होंने इस तरह का ‘सायबर क्राइम’ किया है चाहे वे #BoysLockerRoom के हों या #GirlsLockerRoom के कारवाई दोनों पर होना बहुत जरूरी है | 

यदि ये सोच खत्म करनी है तो अब जेंडर से ऊपर उठ कर देखना होगा | तभी शायद कुछ हो सके…