देश में कोरोना का संकट दिन ब दिन बढता जा रहा है | अभी के ताजा आँकडों के अनुसार देश में कुल २६३९ लोग कोरोना से ग्रसित हैं | और उसनें से ४०० से उपर केसेस तबलिगी जमात के कारण फैले हैं | जो परिस्थिती सरकार और आम जनता बहुत अच्छे से संभाल रही थी अब वह दुगनी कठिन हो गई है, और ऐसे में कोरोना के कारण हमें आने वाले दिनों में और भी परेशानी उठानी पड सकती है | आप बताइये, तबलिगी समाज की गलती, ये गलती नहीं पाप है.. इसका खामियाजा हम क्यूँ भुगतें?
दिल्ली में मरकज में तबलिगी जमात के लोग आते हैं | हजारों लोग एकसाथ कार्यक्रम में सम्मिलित होते हैं | जिनमें कई हजार लोग विदेश से भी आए हैं | और ये सब तब हो रहा है, जब भारत में कोरोना फैलना प्रारंभ हो चुका है | भारत में जब लॉकडाउन घोषित हुआ उसके पहले ही ये लोग भारत के कई शहरों में फैल चुके थे, और पूर्णत: लॉकडाउन होने के बाद भी दिल्ली के निझामुद्दीन में इन लोगों को जान बूझकर छुपाया गया | जब इस मरकज के मौलवी की तबियत खराब हुई और वे कोरोना पॉजिटिव्ह पाए गये, तब सारी घटना सामने आई, लेकिन तब तक ये रोग संपूर्ण भारत में बडे पैमाने पर फैल चुका था | कैसे मान लिया जाए कि इस समाज ने गलती से मरकज में लोगों को रखा, कैसे मान लिया जाए कि इनका इसमें कोई विषैला हेतु नहीं था |
21 मार्च को गृहमंत्रालय ने मरकझ में रह रहे लोगों की जाँच के आदेश दिये, किसी भी प्रकार की जबरदस्ती नहीं केवल आदेश ये जानने के कि वहाँ कितने लोग हैं ? और क्या इनमें कोरोना का खरता है? २१ मार्च को ही पता चला कि यहाँ १७५६ लोग छिपे हैं, और उनमें हजारों कोरोना संक्रमित होने की संभावना है, इनमें से २१६ विदेशी लोग थे, साथ ही ८०० से अधिक विदेशी लॉकडाउन के पहले ही भारत के कई क्षेत्रों में फैल चुके थे | इसके बाद धीरे धीरे सारी बात खुलती गई | और इस जमात के हेतु बाहर आते गए |
जो कह रहे हैं धर्म बीच में नहीं आना चाहिये, तो मरकझ के लोग ही ये सब क्यूँ कर रहे हैं? वे लाठियाँ बरसाएँ देश शांत रहे, वे पत्थर बरसाएँ देश शांत रहे, वे बीमारी फैलाए फिर भी देश शांत रहे क्यों? बात धर्म की नहीं बात मानवीयता की है, कैसे कोई इतना अमानवीय हो सकता है ?
आज सामान्य आदमी ये सवाल कर रहा है कि तबलिगी जमात ने फैलाये जहर का खामियाजा हम क्यों भुगतें | उनके कारण यह बीमारी बढी तो लॉकडाउन और बढेगा, साथ ही समस्याएँ भी | लेकिन हम इनके कारण ये जोखिम क्यों उठाएँ | सोशल मीडिया पे कितने भी धार्मिक झगडे हो जाएँ, लेकिन इस सवाल का जवाब शायद ही कोई दे पाएगा |