बंदे मे है दम...

    12-Apr-2020   
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दोस्तों हम जीते एक बार है, मरते एक बार है, शादी भी लगभग एक ही बार होती है और प्यार भी , पर एक बात बताओ हम ये सब करते क्यूं है?? घर, गाडी , पैसा, अच्छा पार्टनर , ये सब ऊपर जाते समय यहीं रह जाना है, फिर हम इस सब के पीछे क्यूं पडे रहते है???

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अरे भाई ये सवाल मेरा नही आज की कहानी के हीरो का है। जो पिछले कई सालों से अपने जीने का मकसद ढूंढ रहे थे। और इसी सवाल का जवाब ढूंढते-ढूंढते मात्र 24वर्ष की उम्र में ऐसा कमाल किया कि न केवल भारत बल्कि "सुपर पावर' कहलाने वाले देश USA ने भी इनकी बुद्धी का लोहा मान लिया। आइये जानते है इस अदभुत् युवक की कहानी.....

प्रशांत अरूण गाडे ये खंडवा(मध्य प्रदेश) के एक साधारण परिवार से हैं , जहां बाकी बच्चों की तरह ही प्रशांत और उनके बडे भाई से अच्छी पढाई की उम्मीद की जाती थी , पर प्रशांत का मन तो पढने में लगता ही नही था, उन्हें केवल अच्छे मार्क्स के लिये पढना कभी रास नही आया, उनका यही सोचना था कि किताब वो पढो जिसको आप जीवन में उपयोग कर सको!!!काबिल बनने के लिये पढो , कामयाबी अपने आप पीछे आएगी। ये सब बाते उनके घरवालों साथ ही शिक्षकों को अजीब लगती , और परिणाम वही होता जो "थ्री इडियट्स" मे रेंचो का हुआ!!! प्रशांत पूरे साल में से आधे दिन क्लास के बाहर खडा पाया जाता, हालांकि ये बात काफी पुरानी है और फिल्म काफी बाद मे आयी।

प्रशांत के साथ किये गये संवाद के कुछ अंश आपके सामने प्रस्तुत है : 

1)अपने बारे मे बताते हुए प्रशांत कहते हैं कि उनको सबसे ज्यादा प्रेम अपने दादाजी से था , गर्मी की छुट्टियों मे दादाजी दोनो भाइयों को कभी खाली नही बैठने देते , कुछ नया और अच्छा सिखाते जैसे छोटा सा कूलर बनाना , बिजली के उपकरण सुधारना , और प्रशांत का मन इन सब बातों मे बहुत लगता था, उसे अलग-अलग प्रयोग करके नयी वस्तुएं बनाने मे बहोत मजा़ आता था , पर कुछ समय बाद दादाजी चल बसे और प्रशांत बहुत ज्यादा दुखी हो गया , अंतिम संस्कार के वक्त वो संभल नही पा रहे थे , जब देखा उसके प्यारे दादाजी दुनिया से बिदा होते वक्त खाली हाथ गये, यहां तक कि उनके कपडे भी हटा दिये थे, पिताजी से पूछने पर जवाब मिला यही दुनिया की रीत है, अब वे और भी दुखी हुये। तभी से एक सवाल उनके मन मे आया कि आदमी मरते वक्त क्या साथ ले जाता है??? जीतेजी इतना सब क्यूं करता है?जब पता ही है कि खाली हाथ जाना पडेगा!!!!! अब प्रशांत अपने इन्ही सवालों के जवाब ढूंढने मे लग गये!!!

2) पढाई और करियर की बात पर प्रशांत कहते है कि घरवालों ने इंजीनियरिंग मे एडमिशन करा दी,वो पूरी तयारी कर चुके थे कि कॉलेज में बहुत कुछ नया करने मिलेगा, ढेर सारे प्रोजेक्ट , प्रेक्टिकल और खोज करने मिलेगी , पर वहां पहुचं कर उनके हाथ निराशा ही लगी, सीनियर्स अपने प्रोजेक्ट बाहर से खरीद कर प्रेजेंटेशन वाले दिन रख देते थे और उनको मार्क्स मिल जाते थे, उनसे सवाल पूछने पर जवाब मिला "बेटा थोडे दिन रुक जा तू भी यही करेगा"

ये सब प्रशांत को अजीब लगा और उन्होने तय किया कि वो खुद अपनी एक लैबोरेटरी बनाएंगे जिसमे जूनियर्स-सीनीयर्स सबको प्रोजेक्ट बनाना सिखाएंगे!!! पर पढाई का तो डब्बा-गुल ही था, अपने सीनियर्स को मॉडल बनाना सिखाने वाले प्रशांत हर सैमिस्टर मे गच्चा खा रहे थे, आखिर में सेकेंड इयर में वो जान गये कि वो इंजीनियरिंग करने के लिये नही बने और उन्होने पढाई बीच मे ही छोड दी, अब वे अपने लैब में "रोबोटिक्स" में नये-नये प्रयोग करने लगे, पर अब भी वही "ढाक के तीन पात"!!!


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अपने जीवन के उद्देश को खोजने में जुटे रहने वाले प्रशांत सवाल का जवाब मिले बिना कैसे चुप बैठ सकते थे।

 

माता-पिता चिंतित थे ये लडका कहीं टिकता नही, आखिर करना क्या चाहता है?? अंततः उन्हे बडे भाई के पास पूना भेज दिया, अब प्रशांत पूना के एक लैब में नौकरी करने लगे व साथ ही अपने लिये एक अच्छा सा प्रोजेक्ट ढूंढने लगे।।

3)रोबोटिक्स के क्षेत्र में आने का निर्णय कैसे लिया??

इस सवाल के जवाब में प्रशांत बताते हैं कि प्रोजेक्ट की तलाश करते समय उन्हे एक ऐसा व्यक्ति मिला जिसका हाथ कट चुका था और उसने एक इलेक्ट्रॉनिक हाथ डिजाईन किया था , बस्स.... अब उसे अपनी मंजिल मिल गयी थी , बचपन से ही कुछ नया कुछ अलग करने की चाहत रखने वाले प्रशांत को अब अपना पसंदीदा काम मिल गया था अब वो ये जानने निकल पडे कि इन हाथों से वो किसकी मदद कर पाएगें, तब एक दिन अचानक उनके सामने 7 साल की बच्ची आयी जिसके दोनो हाथ नही थे,उसे देख प्रशांत ने तय किया कि वो उसी बच्ची के लिये अपना प्रोजेक्ट करेंगे, परंतु वो कहते है ना अभी दिल्ली बहुत दूर थी, एक कंपनी से अपने प्रोजेक्ट के बारे में बात करने पर पता चला कि एक कृत्रिम हाथ की कीमत 12 लाख होती है, और वो कृत्रिम हाथ 18 वे साल तक हर साल नये लगाने पडेंगे क्यूंकि जैसे-जैसे बच्ची बडी होगी, हाथों का आकार भी बढाना होगा। ये सुनकर प्रशांत के अंदर का जोश ऐसे खत्म हुआ जैसे गुब्बारे से हवा निकल जाती है, उसने सहज ही ये पता करने की दृष्टीसे कि उसका प्रोजेक्ट किसी काम आएगा या नही , भारत के कुछ आंकडे पता किये , और नतीजा बहुत चौकाने वाला था, हर साल देश मे 85000 से ऊपर लोगों के हाथ किन्ही कारणों से कट जाते है और उनमे से लगभग 80000 लोगों को अपना जीवन ऐसे ही बिताना पडता है क्यूंकि कृत्रिम हाथ की कीमत 12 लाख है। अब प्रशांत ये निर्णय ले चुके थे कि उन्हे क्या करना है !!! पर अब भी अंगूर खट्टे ही थे , वो कृत्रिम हाथ बनाना तो चाहते थे उन्होने दिन-रात मेहनत करके डिजाईन भी तैयार कर लिया था परंतु हाथ बनाने के लिये ना ही उनके पास मशीन थी ना ही उपकरणों के लिये पैसा!!! कोई करे तो क्या करे???

4)अपने जीवन का टर्निंग पॉइंट किसे कहेंगे??

इस सवाल के जवाब में वो कहते है कि ऐसी विकट परिस्थिती में सोशल मीडिया उनके काम आया, उन्होने एक कैंपेन चलाया जिसमें वो अपने प्रोजेक्ट और अपना उद्देश सबको बता रहें थे, फिर एक दिन जबकी प्रशांत बहोत निराश थे कहीं कोई रास्ता नही दिख रहा था अचानक ही जयपुर की एक समाज सेवी संस्था ने उन्हे फोन किया और अपना प्रोजेक्ट दिखाने कहा। वे तुरंत ही निकले और घरवालों की मरजी के खिलाफ जयपुर में ही रहने लगे। अब उनका प्रोजेक्ट फाइनल हो गया था, उस संस्था को प्रशांत का काम बहुत पसंद आया और उन्होने उसे हाथ बनाने के लिये कहा, अब असली परीक्षा थी कि जो सोचकर बैठें है वो होगा या नही , पर अबकी बार ईश्वर ने उनकी सहायता की और वो कामयाब रहे, उनके द्वारा बनाये हुए कृत्रिम हाथ का परीक्षण सफल हुआ। परंतु असली समस्या अब आयी कि ये 12 लाख रुपये का एक कृत्रिम हाथ बनाएंगे कैसे??? क्यूंकि प्रशांत किसी से बार-बार प्रयोग करने कह नही सकते थे , अब वो बेहद हताश हो गये, सिवाय अंधेरे के कुछ नजर नही आ रहा था , एक दिन अपने लैब में बैठकर वो अपनी किस्मत को मन ही मन कोस रहे थे तभी बाहर से कुछ हंसने खिलखिलाने की आवाजें आयी, झांककर देखा तो वे दंग रह गये कि जो लोग इतने खुश लग रहे थे उनके हाथ और पैर नही थे पर वे अपने दोस्तों के साथ हंस-हंस कर बाते कर रहे थे!!! उनको देखकर प्रशांत को एक नयी चेतना मिली वो असहाय , दिव्यांग जब अपनी अवस्था से दुखी नही है तो हम तो परिपूर्ण है , बस थोडा वक्त ही तो खराब है पर मेहनत की तो सब अच्छा होगा।

ये विचार करके वो उठे और पूरी ताकत से अपने प्रोजेक्ट की कैंम्पेनिंग शुरू की।


5) अंततः सफलता हाथ लगी!!!

वो कहते है ना कि यदि किसी को पूरी शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात तुम्हे उससै मिलाने में लग जाती है। कुछ ऐसा ही प्रशांत की चाहत के साथ हुआ , एक दिन अचानक उन्हें अमेरिका के एक प्रोफेसर का ई-मेल आया , जिन्होने "यू-ट्यूब" पर प्रशांत का वीडियो देखा और सीधे ही उनको अमेरिका आकर प्रेजेंटेशन देने कहा , अब प्रशांत के पांव जमीन पर नही पड रहे थे , वो वहां कांन्फ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले थे, इतनी कम उम्र में इतना बडा अवसर उन्हे मिला था!! अपने खर्चे पर वो प्रोफेसर प्रशांत को अमेरिका ले गये जहां उनका ये प्रोस्थेटिक हैंड (कृत्रिम हाथ) का प्रोजेक्ट सबको बहुत पसंद आया और उस कंपनी ने वापस आने से पहले प्रशांत को प्रोस्थेटिक हैंड बनाने मे उपयोग होने वाली 10 मशीनें गिफ्ट के रुप में दी , साथ ही भविष्य में भी मदद करने का आश्वासन दिया।


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6) "इनाली फाऊंडेशन"

अमेरिका से आने के बाद प्रशांत ने उन मशीनो की सहायता से कृत्रिम हाथ बनाने का श्रीगणेश किया, पर अभी भी समस्या पैसों की ही थी, तब अपनी गर्लफ्रेंड #इनाली# के नाम से उन्होने एक संस्था प्रारंभ की जहां वो ऐसे लोगो की मदद करने लगे जिनके हाथ किसी दुर्घटना में कट चुके थे, अब वो सक्षम लोगों से सहायता लेकर ऐसे गरीब और असहाय लोगों को प्रोस्थेटिक हैंड बिना मूल्य देने लगे जो ये हाथ खरीद नही सकते थे। पिछले चार वर्षों में प्रशांत करीब 1500 लोगो को 12 लाख रुपये का एक कृत्रिम हाथ पूरी तरह निशुल्क लगा चुके है तथा उनका ये नेक काम निरंतर जारी है, उनका लक्ष्य 10000 लोगों को ये प्रोस्थेटिक हैंड लगाना है, आज की तारीख में उन्हे रोज 200 से अधिक फोन रोज आतें हैं जो कि अपनी ये समस्या उन्हें बताते हैं और हाथ पाना चाहते है।


7)प्रोत्साहन व पुरस्कार!!

अपने इस अनोखे काम के लिये प्रशांत को भारत की सबसे प्रसिद्ध कंपनी "इंफोसिस" ने "इंडिया का बेस्ट इनोव्हेशन" ये पुरस्कार प्रदान किया, साथ ही रफाल बनाने वाली कंपनी अब प्रशांत ने बनाये हुये हाथों को डिजाईन करती है।

इसके अलावा James Dyson Award,Nasscomm Foundation के द्वारा दिया गया है।


8)कोरोना संक्रमण मे आपकी भूमिका

इस बात के जवाब में प्रशांत कहते है कि सबसे पहले तो इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति को एक ही जगह पर रोकना तथा हॉस्पिटल्स में उपचार के लिये आवश्यक साधन होना , यही दो बातें सबसे जरूरी है, इसलिये प्रशांत ने एक डिवाईस बनायी है जो एक Tracker है ये डिजिटल है जो कोई सामान्य व्यक्ती खोल नही सकता , एक बार ये बेल्टनुमा ट्रेकर किसी मरीज के पैर पर लॉक कर दिया तो इसे निकाला या तोडा नही जा सकता, और जैसे ही मरीज भागने की या दूर जाने की कोशिश करे तुरंत पुलिस को खबर हो जाती है!!!

एक अन्य उपकरण प्रशांत ने तैयार किया है जो कि एक वैंटिलेटर है , आज देश में कोरोना की भयानक स्थिती देखते हुए वैंटिलेटर्स का अभाव ना हो इस उद्देश से ये उपकरण बनाया है , दोनो ही उपकरणों का परीक्षण शासकीय विभाग द्वारा हो जाने के बाद ये जनसामान्य के लिये उपलब्ध किये जाएंगे!!




9) प्रशांत की प्रेरणा एवं भविष्य

इस सवाल के जवाब में प्रशांत थोडा सा मुस्कुराते हुए बताते है कि उनकी प्रेरणा उनका सपोर्ट "इनाली" है जो कॉलेज के समय से उनके साथ है और जीवन के हर बुरे वक्त में ताकत बन कर उनके साथ खडी है, उसके लिये प्रशांत का साथ होना कामयाब होने से कहीं ज्यादा मायने रखता है , आज जब सब पैसा , गाडी , घर में अपना जीवन खोजते हैं वहीं "इनाली" ने प्रशांत के सपने को उसके सवालों को ही अपना जीवन बना लिया, #ज्यादा से ज्यादा क्या होगा , फेल ही हो जाओगे न? पर जीवन में नया कुछ सीखने तो मिलेगा# ये इनाली के शब्द प्रशांत की ताकत बनें और आज प्रशांत की कामयाबी के बाद भी वो उसके साथ हर कदम पर है।

भविष्य की बात करते हुये प्रशांत कहते है कि वो भारत के चिकित्सा क्षेत्र में बहुत कुछ करना चाहतें है , ऐसी सुविधाएं ऐसे उपकरण जो भारत में उपलब्ध नही हैं वो अपने प्रयोग से ऐसा ही कुछ बनाते रहना चाहते है जिससे कि अधिक से अधिक लोगों को अच्छा इलाज मिले!!!

10) इंसान जाते वक्त क्या लेकर जाता है??

प्रशांत कहते हैं जब उन्होने पहली बार एक औरत को दोनों कृत्रिम हाथ लगाये, उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा , वो रो रही थी कह रही थी अब वो अपनी बेटी के बाल बना सकती है, उसे खाना खिला सकती है , ये देखकर उनकी आंखो में भी आंसू आ गये और तभी उस सवाल का जवाब वो जान पाये कि दुनिया से जाते वक्त आप खुद का कुछ नही पर औरों की खुशी , हंसी और दिल से निकलने वाली दुआंएं ले जा सकते हो, क्यूंकि जो दूसरों को खुशी देता है वो मर कर भी औरों के दिलो में जिंदा रहता है!!

- प्रगती गरे दाभोळकर