मिलिये दुनिया की बेस्ट माँ से.. जिनका नाम है ‘आदित्य तिवारी’

    09-Mar-2020   
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इस वर्ष महिला दिवस की थीम थी, ‘समानता’ अर्थात Gender Eqality. लेकिन क्या आज भी हम सही मायने में ये समानता ला पाये हैं? इस प्रश्न का उत्तर देती हुई यह अनोखी घटना | लगभग ४ साल पहले आप सभी ने पुणे के एक व्यक्ति आदित्य तिवारी की कहानी शायद पढी होगी | एक एकल पिता जिन्होंने डाउन सिंड्रोम से ग्रिसत नन्हे बच्चे को गोद लिया | इस वर्ष उन्हीं आदित्य तिवारी को बंगलोर में ‘बेस्ट मॉमी ऑफ द वर्ल्ड’ इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है | समानता का इससे बडा उदाहरण दे सकते हैं आप?


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हमारे देश में जहाँ आज भी बहुत ही छुपते छुपाते बच्चा गोद लिया जाता है, समाज में इससे संबंधित ढेर सारे सवाल जवाब किये जाते हैं | आज भी हर किसी को ‘अपना खून’ चाहिये होता है, ऐसी परिस्थिती में पुणे स्थित एक एकल नौजवान जो कि सिंगल है, एक बच्चा गोद लेना चाहता है | एक ऐसे बच्चे को नयी जिंदगी देना चाहता है, जिसे डाऊन सिंड्रोम जैसा विकार है | यह अपने आप में ही एक बडी बात है |


आदित्य तिवारी केवल २७ वर्ष के थे जब उन्होंने ये निर्णय लिया | उनका यह निर्णय आसान नहीं था | उस वक्त तक एकल पिता तो बच्चा गोद लेना बहुत कठिनाई का काम था | साथ ही बच्चा गोद लेने के लिये आपको ३० वर्ष की उम्र का होना आवश्यक था, लेकिन फिर भी हर कठिनाई का सामना करते हुए आदित्य ने ‘अवनीश’ को एक नयी जिंदगी देने का प्रण किया और हर कठिनाई पर मात कर उसे गोद लेने में आदित्य सफल रहे |


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सन 2016 में आदित्य ने अवनीश को गोद लिया | उनकी इस लडाई के बाद कानून ने भी अब गोद लेने की न्यूनतम उम्र 25 वर्ष कर दी है | इस विषय में आदित्य कहते हैं, “मुझे अवनीश की कानूनी कस्टडी 1 जनवरी 2016 को मिली. डेढ़ साल तक स्ट्रगल करने के बाद. तब से लेकर अब तक का हमारा सफ़र बेहद रोमांच भरा रहा है. भगवान द्वारा मुझे दिया गया सबसे प्यारा तोहफा है वो. मैंने कभी खुद को माता-या पिता के रोल में नहीं देखा. मैंने हमेशा कोशिश की है कि उसके लिए एक अच्छा पेरेंट और एक अच्छा इंसान बन सकूं.”

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वे आगे बताते हैं, “अवनीश में मेरे इंटरेस्ट को लेकर मुझसे लगातार सवाल पूछे जा रहे थे. कोई उसे अडॉप्ट नहीं करना चाह रहा था क्योंकि वो एक स्पेशल नीड्स वाला बच्चा था. (ऐसे बच्चों को अलग तरह की ख़ास देखभाल की ज़रूरत होती है, जो दूसरे बच्चों को नहीं होती.) मेरे बेटे को डाउन सिंड्रोम है और उसे देखभाल की ज़रूरत थी. यही वजह थी कि मैं उसे अडॉप्ट करना चाहता था. जो मैंने किया, उसे स्वीकार करना शुरुआत में लोगों के लिए आसान नहीं था. मेरे परिवार ने भी मुझे मना किया था. उन्हें लोगों ने बाद में मेरे प्रयासों की तारीफ़ की जब उन्होंने देखा कि मैंने जो करने की ठानी थी वो मैंने कर लिया है.”

आज जहाँ हम निर्भया का केस देखते हैं, उनके गुनहगारों को देखते हैं, तब लगता है कि समाज में कैसे मर्द हैं? कैसे मर्दों को ये समाज शह दे रहा है | लेकिन आदित्य को देखकर एक आशा आज भी मन में जागती है कि चाहे समाज में कितने भी गुनहगार हों, आदित्य जैसे मर्द आज भी हैं और वे आने वाली पिढी के सभी पुरुषों के लिये एक प्रेरणा हैं | आदित्य ने नयी पिढी को एक राह दिखाई है, जो समाज को एक नयी और सकारात्मक दिशा में लेकर जाएगी |

- निहारिका पोळ सर्वटे