क्या आप जानते हैं ? पारे की खोज किसने की ?

    08-Oct-2020
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आपने आपके जीवन में थर्मामीटर का उपयोग एक ना एक बार तो अवश्य किया होगा | उसमें जिस धातु के कारण आपका तापमान पता चलता है, उसे ‘पारा’ या ‘मर्करी’ कहते हैं | क्या आपको पता है इस पारे की खोज किसने की ? या ये पारा आया कहाँ से ? ऐसा कहा जाता है कि पारे की खोज सत्रहवीं सदी के पहले हुई है | लेकिन मजे कि बात यह है कि भारत में पारा ईसा के ढाई हजार वर्ष पहले से ही भारत के ऋषियों और वैद्यों द्वारा उपयोग किया जाता था | आयुर्वेद में भी पारे का उपयोग किया जाता था, अब आप सोच रहे होंगे जहरीला पारा, औषधियों में कैसे उपयोग दे सकता है ?


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प्रशांत पोल लिखित पुस्तक ‘भारतीय ज्ञान का खजाना के अनुसार’ पश्चिमी दुनिया जिस पारे से तीन सौ वर्ष पहले तक पूर्ण अनजान थई, उस पारे का उपयोग भारत में ईसा के ढाई हजार साल पहले भारत में हुआ करता था | हिंदू पद्धती के अनुसार जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य पर १६ संस्कार किये जाते हैं | ठीक इसी प्रकार पारे पर भी १८ प्रकार के संस्कार किये जाते हैं, और इन १८ संस्कारों के बाद ही पारा शुद्ध होता है, और औषधी के रूप में इसका सेवन किया जाता है |

इस पुस्तक में वर्णित है कि, वाग्भट्ट आचार्य द्वारा लिखित ‘रस रत्न समुच्चय’ इस ग्रंथ में पारे को औषधी के रूप में कैसे उपयोग किया जाता है, इस विषय में विस्तार से लिखा गया है |



जिस विदेशी रसायनशास्त्र अर्थात ‘केमेस्ट्री’ का हम अध्ययन करते हैं, भारत की ‘केमेस्ट्री’ उससे कई पुरानी है, और भारत के इस ज्ञान का उपयोग कई विदेशी वैज्ञानिकों ने भी किया है | भारत में आज भी ऐसी कई संस्थाएँ हैं, जो भारत के इस ज्ञान के बारे में लोगों तक जानकारी पँहुचाने का काम कर रही हैं | विज्ञान भारती भी इन्हीं संस्थाओं में से एक है | इस संस्था द्वारा आयोजित प्रतियोगिया विद्यार्थी विज्ञान मंथन में प्रतियोगियों से भारतीय विज्ञान पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं, इस प्रतियोगिता परीक्षा के पाठ्यक्रम में विशेष रूप से भारतीय विज्ञान संबंधी विषयों का समावेश किया गया है, जिससे अधिकाधिक लोगों तक भारत के विज्ञान संबंधी जानकारी पँहुच सके |

इस प्रतियोगिता के लिये रजिस्ट्रेशन प्रारंभ है, रजिस्टर करने की अंतिम तारीख १५ अक्टूबर है | छठवीं से ग्यारहवीं कक्षा तक के विद्यार्थी इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकते हैं |



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