#GolRotiCanWait आईये Gender Equality की शुरुआत घर से करते हैं…!

    23-Oct-2020   
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हम सब ना बहुत बडी बडी बाते करते हैं, Gender Eqality की | लिंगभेद ना रखने की | लडकियों को समानता मिलने की, काम से समान अवसर, समान वेतन आदि की | वैसे तो ये सारी बडी बडी बातें करना सभी को पसंद है | लेकिन क्या हम घर पर Gender Eqality मानते हैं ? हाँ पढाई के और नौकरी के अवसर समान होंगे, पर क्या घर की छोटी छोटी बातों में, कामों में घर के मर्दों का, लड़कों का उतना ही सहभाग होता है, जितना की घर की औरतों या लडकियों का ?


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चलिए कुछ प्रश्न पूछती हूँ :

१. क्या आपने आपके पापा को, या आपके घर के मर्दों को हर रोज किचन में खाना बनाते देखा है ? या किचन के काम करते देखा है ?

२. क्या आपके यहाँ जब आपके भैय्या ऑफिस से लौट कर आते हैं, तो क्या उसी फुर्ती से किचन में माँ की मदत करने में लग जाते हैं, जैसे कि आपकी भाभी ?

३. क्या आपके यहाँ खाना वही बनता है जो सभी को पसंद हो या आपके यहां भी ‘अरे उन्हें तो ये सब्जी पसंद ही नहीं वो नहीं खाएँगे, या अरे उसे ये पसंद नहीं, उसके लिये कुछ और बनाना पडेगा’ ये संवाद सुनने को मिलते हैं ?

४. क्या आपके घर में घर के कामों में जैसे आपकी माँ या चाची का सहभाग होता है, भाभी का या बहन का सहभाग होता है, वैसे ही आपके पिताजी, चाचा या भाई का होता है ?

५. क्या हर रोज झाडू पोछे से लेकर, खाना खाने के बाद साफसफाई और खाना बर्तनों में निकाल कर रखने का काम आपके घर के मर्द करते हैं ?


यदि इन कुछ प्रश्नों के उत्तर आपकी पुस्तक में हाँ हैं, तो आप उन कुछ चुनिंदा परिवारों में से आते हैं, जहाँ घर पर लडका लडकी के बीच किसी भी प्रकार का भेद नहीं होता | लेकिन आज भी भारत में लगभग ७० प्रतिशत से अधिक घर ऐसे हैं, जहाँ ये सारे काम महिलाओं के माने जाते हैं, और इस बात की इतनी आदत पड चुकी है, कि हमें यह गलत भी नहीं लगता |

परिस्थिती ऐसी है कि घर के बच्चे और बडों में भी मर्द पहले खाना खाने बैठते हैं, फिर घर की औरतें | घर के पुरुषों के पसंद का खाना बनाना महिलाओं को अधिक पसंद है | कारण इतना ही कि यदि वे अपनी पसंद से कुछ बनाएँ तो उन्हें दोबारा मेहनत कर कुछ और बनाना ही पडता है, सबके लिये जो बना है, वो मर्द खाते ही नहीं | आज भी घर पर बहुओं का काम खाना खाने के बाद की साफ सफाई करना, बर्तन जमाना आदि होता है, पुरुष इस ओर झांक कर भी नहीं देखते | और घर की बडी औरते ही कहती हैं, “अरे जाने दो उसे आदत नहीं है ना..!”


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यही सोच तो बदलनी है | आज की तारीख में सभी को अपनी पत्नी पढी लिखी, कमाने वाली चाहिये होती है, क्यों कि उसका अपना अस्तित्व है, उसके माँ पिताजी ने उसे मेहनत से पढाया है और आज की दुनिया की आवश्यकता है कि हर लडकी नौकरी या व्यवसाय करे | लेकिन फिर भी किसी की अपेक्षा ये नहीं होती कि मर्द भी घर के काम बराबरी से करें | खाना बनाने से लेकर, रसोई की सफाई तक, गेहूं बीनने से लेकर बाथरूम धोने तक, चाय बनाने से लेकर, कपडे धोने तक हर काम सभी पुरुषों को उसी तरह आने चाहिये जैसे कि महिलाओं को बचपन से सिखाया जाता है |

इस नवरात्रि सभी देवी की पूजा करेंगे, लेकिन यह करते वक्त ‘सुनो आज खाने में मजा नहीं आया, नमक जरा कम था और सब्जी अच्छी नहीं बनी |” कहने वाले लोग भी आपको मिलेंगे, ‘ये क्या घर फैला हुआ है, थोडा जमा भी लिया करो कभी’ कहने वाले पति भी मिलेंगे | 'सुनो खाना परोस दो' कहने वाले ३५-४० साल के पुरुष भी मिलेंगे | क्यों कि…!

उन्होंने कभी बचपन से देखा ही नहीं कि ये काम सबके होते हैं, किसी एक Gender के नहीं |

१. खाना सबको खाना होता है, लेकिन बनाने का काम महिलाओं का |
२. सफाई सबको पसंद होती है, लेकिन करें महिलाएं |
३. नींद सबको आती है, लेकिन चादर धोने से लेकर बिछाने तक के काम महिलाएँ करें |
४. चाय सभी को चाहिये, लेकिन अपने हाथ की नहीं |


कब तक हम अपने बेटों को, भाईयों को पतियों को हम पर ऐसे निर्भर रखेंगे कि हम कुछ बडा ना कर पाएँ ? कब तक उनके कपडे धोने से लेकर उनकी झूठी प्लेट उठाने तक के सारे काम आप करेंगी, क्यों कि वो ‘आपके काम हैं?’


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समय बदला है, और समय के साथ सोच भी बदलनी होगी | Gender Eqality की बातें घर से शुरु हों, उसका परिणाम घर पर दिखने लगें तब आप केंडल मार्च निकालने बाहर जाने के बारे में सोचें | इसके लिये शुरुआत हमें हमारी पीढ़ी से करनी होगी | पिछली पीढ़ी की इसमें गलती नहीं, क्यों कि उन्होंने जीवन को ऐसे ही देखा है, लेकिन हम कब तक पीढ़ी दर पीढ़ी पुरुष प्रधान समाज बनाते जाएँगे ? क्या आत्मनिर्भर होना सभी के लिये एक जैसा नहीं होना चाहिये ? क्या घर के काम सभी के नहीं हो सकते ? जब तक ये नहीं होगा तब तक कोई भी स्त्री चाहे वो होम मेकर हो, स्टूडेंट हो, वर्किंग हो, जिसका स्वयं का बिझनेस हो या फिर कोई भी, कभी भी सही मायने में कुछ बडा नहीं कर पाएगी |

आसान नहीं होता घर और दफ्तर दोनों संभालना, एक बार 'वे' भी कर के देख लें, फिर शायद मिल बाँट कर काम करने का चलन आ जाएगा | 

काम यदि मिल बाँट कर किये जाएं तो जल्दी होते हैं, और कोई एक सारा वक्त इन्हीं कामों में फँसा नहीं रहता | करिअर दोनों का जरूरी है, इच्छाएं दोनों की आवश्यक है, घर के काम भी दोनों को ही आना आवश्यक है| 

हमें क्या करना होगा?

१. आने वाली पीढ़ी के / अगली पीढ़ी के लडकों को बचपन से ही घर के कामों में शामिल करें |
२. जब बच्चे अपने पिता को घर के काम करते हुए देखते हैं, खाना बनाते हुए देखते हैं, तब उन्हें ये नॉर्मल लगने लगता है, और इसे ये विशेष नहीं मानते | इस बात का ध्यान रखें |

३. घर का माहौल ऐसा रखें कि ये काम महिलाओं का और ये पुरुषों का ऐसा भेदभाव ही ना हो सके |

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शुरुआत अपने घर से और अपनों से करें | जिस तरह आज के समय में लडकियों का नौकरी करना सामान्य हो गया है, कोई विशेष बात नहीं उसी तरह लडकों का घर के काम करते हुए ऑफिस संभालना भी सामान्य बनना चाहिये, इसे विशेष दर्जा प्राप्त नहीं होना चाहिये, तभी हम सही मायने में Gender Eqality को जीत सकेंगे | उसकी गोल रोटी को जज करने से पहले बताईये कि क्या आपको रोटी बनाना भी आता है ? 

समाज बदलना है, तो पहले खुद को बदलना होगा |


- निहारिका पोल सर्वटे