गाँधी जयंती पर बापू के नाम कुछ...

    02-Oct-2020
|
mahatma gandhi  4_1 
 
प्रिय बापूजी,
 
पता नहीं आप कहा होंगे! पर फिर भी मैं आपको अपने दिल की कुछ बात बताना चाहता हूँ। आज मेरे आसपास और पूरे देश मैं जो कुछ हो रहा हैं वो मुझे बड़ा ही दुखी कर देता हैं। कभी-कभी सोच में पड़ जाता हूँ कि जिन प्रयत्नों और मेहनत से आप और आप जैसे अन्य लोगों ने जिस नए भारत की नींव रखी थी, आज उसकी प्रगति अवरुद्ध हो चुकी हैं। कितना महान सपना देखा था आपने अपने इस भारत के लिए! एक ऐसा भारत जो अपनी नीतियाँ गाँव और समाज के उस अंतिम व्यक्ति को देखकर बनाए जो हर तरफ से अपेक्षित और अपने आप को अवसरविहीन पाता है। आपने एक ऐसे भारत का सपना देखा था जहां गाँव विकास की इकाई होंगे, ऐसे गाँव जो आत्मनिर्भर हो और जिसे अपनी जरूरतों के लिए शहरों का मुंह ना ताकना पड़े। आपके भारत में हर धर्म और संस्कृति के लोगों को सम्मानपूर्वक रहने की संकल्पना थी। आपने एक ऐसा शिक्षा का खाका तैयार किया था जिससे दिमाग और हाथ के काम मे कोई भेद नहीं रहता और विभिन्न कामों से व्यक्ति ज्ञान, मूल्यों और दक्षताओं का निर्माण करता।
बेशक आपके यह सारे विचार और सपने अद्भुत, दूरदर्शिता से लैस और विचारों की कसौटी पर कसे हुये थे। यह बात सिर्फ मैं नहीं कह रहा, विश्व के अनेक विद्वान भी यही कहते हैं। पर दुख की बात यह है कि यह विचार सिर्फ विचार ही बने रहे; यह कभी स्वतन्त्रता के बाद आई भूरी सरकाओं द्वारा ना तो अपनाए गए और ना ही लागू किए गए। इनको नजरंदाज किसी एक सरकार ने नहीं बल्कि अब तक बनी हर भूरी सरकार ने किया। अब तो वर्तमान हालत और भी ज्यादा खराब है। गाँव को ध्यान मे रखते हुये विकास करना तो दूर आज अनेकों गाँवो, जो जंगलों मे बसे हैं, को शहरों और कारखानों के लिए खाली कराया जा रहा हैं। सरकारी स्कूलो, अस्पतालों और अन्य संस्थाओं को जानबूझकर खस्ताहाल किया जा रहा है ताकि वे खुद-ब-खुद बंद पड़ जाये और उद्योगपति नीजी संस्थाएं खोकजर बेशूमार लाभ कमा सके। आज लोग धर्म और जाति के भेद में और डूब गए है और सरकार की सारी मशीनरी इस भेद को और गहरा करने मे लगी है।
 
स्वतंत्र के बाद से ही आपके विचार धीरे-धीरे धूमिल हो रहे थे पर अब तो उनका अस्तित्व ही खतरे मे हैं। आपको प्रतीक के रूप मे पूजा तो जा रहा है लेकिन आपके विचारों के हत्या की जा रही है। आपकी मूर्तिया तो देशभर मे खड़ी है पर आपकी आत्मा (विचार) का इस भारत मे कोई स्थान नहीं है। यह आप पर सीधा हमला है। अभी तो धीरे-धीरे आपके विचार खत्म किए जा रहे है, कुछ समय बाद आपकी मूर्तिया भी तोड़ी जाएगी। पर मूर्तियों मे क्या रखा है आत्मा तो खत्म हो ही रही है।
 
ऐसे समय मे मुझे बेहद दुख और चिंता होती है कि आपके भारत मे यह सब क्या हो रहा है? और मुझ जैसे युवा इस स्थिति में क्या कर सकते हैं? कभी-कभी मुझे भी लगता है कि मुझ जैसे युवाओं को अहिंसक तरीकों का उपयोग करते हुये सड़कों पर उतर जाना चाहिए। लेकिन फिर यह संदेह मन मे उठता है कि हमारी भूरी सरकार तो गोरी सरकार से भी खतरनाक है जो बिना चेतावनी के अहिंसक आंदोलनों पर भी गोलियां चला सकती है। लेकिन इस भय और दूविधा की स्थिति मे मुझे आपका दिया हुआ तिलिस्मा याद आ जाता है कि जब कभी तुम खुद को दुविधा कि स्थिति मे पाओ तो तुम अपने जीवन मे मिले हुये सबसे दीन-हींन इंसान को याद कर लेना और सोचना कि क्या मेरे काम से इनका भला होगा।
 
यह तिलिस्मा मुझे फिर से उठ खड़ा होने को प्रेरित करता है और इसी की वजह से मैं आज जमीन से जुडकर काम कर रहा हूँ ।
धन्यवाद!
 
 
 
आपका युवा देशवासी
- आशीष